नाहन: इस वक्त, सिरमौर में एक ऐसे जिलाधीश तैनात हैं, जिनके पर्यावरण प्रेम के साथ-साथ प्लास्टिक मुक्त अभियान से हर कोई वाकिफ है। इसकी तस्दीक उस समय भी हुई थी, जब जिलाधीश आरके परुथी को प्लास्टिक निष्पादन के लिए दिल्ली में पुरस्कृत किया गया। लिहाजा उम्मीद की जा रही है कि ठीक अपने कार्यालय के समीप गंदगी से अटे पड़े कालीस्थान तालाब की भी तस्वीर बदल सकते हैं।
इस तालाब में एक अकेला परिंदा ही जीवन यापन कर रहा है। शायद उसके साथी इस तालाब इस कारण नहीं रहना चाहते, क्योंकि तालाब पूरी तरह से दूषित हो चुका है। तालाब के चारों तरफ अगर नजर दौड़ाई जाए तो पीपल, वट व जामुन के पेड़ एक ऐसा नजारा पेश करते हैं, मानों एक वक्त में संत भी इस क्षेत्र को तपोस्थली के तौर पर इस्तेमाल करते होंगे। मगर आज स्थिति यह है कि मनुष्य तो क्या परिंदे भी गंदगी से आजीज आकर यहां से रुखसत हो गए। अकेला परिंदा अगर बोल पाता तो चीख-चीख कर कहता कि तालाब को साफ करवा दो, ताकि उसके साथी भी यहां लौट आए ओर उसे एकल जीवन से निजात मिल सके।
इस तालाब की हालत में केवल एक ही सुकून है, वो ये कि सीवरेज दाखिल नहीं होती। ठीक फायर बिग्रेड कार्यालय के सामने एक छोर पर दो करीबी दोस्तों की टोली ने हनुमान मंदिर को बेहद ही सुंदर तरीके से मेंटेन किया हुआ है। बताते हैं कि एक रिटायर्ड अधिकारी भी तालाब के चारों तरफ अपनी निष्काम सेवा करता नजर आता है। वंदे मातरम को पत्थरों से खूबसूरती से उकेरा गया है। ऐसी स्थिति में यदि तालाब के सौंदर्यकरण को लेकर ठोस रणनीति बन जाए तो निश्चित तौर पर एक अलग ही पहचान मिलेगी। धावक सुनील शर्मा का कहना है कि जैसे ही कुछ वक्त मिलेगा तो इस तालाब के उत्थान के लिए कोई इवेंट करेंगे।
ऐसा भेदभाव क्यों…
शहर में रानीताल, पक्का तालाब व कालीस्थान तालाब हैं। एक अरसा पहले पक्का तालाब की खूबसूरती को बढ़ाने के लिए अनारकली रेलिंग लगाई गई, लेकिन कालीस्थान तालाब के साथ सौतेला व्यवहार हुआ। करीब तीन फुट ऊंची जाली लगाकर इतिश्री की गई है। जाली भी कई जगहों से टूटनी शुरू हो गई है। गौरतलब है कि हाल ही में कालीस्थान तालाब का वजूद खत्म करने का प्रयास भी हुआ था, लेकिन संस्थाओं की आपत्ति पर फैसले को खारिज कर दिया गया था। दीगर है कि शहर की पहचान तालाबों व सैरगाहों से होती है। आज भी कोई भी किसी भी रास्ते के एक छोर से चलता हुआ वापस उसी जगह पहुंच जाता है।