शिमला: हिमाचल प्रदेश विधानसभा के मंगलवार को बुलाए गए एक दिवसीय विशेष सत्र में अनुसूचित जाति व जनजाति संबंधी 126वां संशोधन विधेयक सर्वसम्मति व ध्वनिमत से पारित किया गया। इव विधेयक में आरक्षण की अवधि को वर्ष 2030 तक आगे बढ़ाने का प्रावधान है। विधेयक पर दो घंटे से अधिक समय तक सदन में चली चर्चा में सतापक्ष व विपक्ष के एक दर्जन से अधिक सदस्यों ने हिस्सा लिया। पूरा सदन विधेयक के पक्ष में एकजुट दिखा। हालांकि चर्चा के दौरान सत्तापक्ष व विपक्षी सदस्यों के बीच कई मुद्दों पर तीखी नोक-झोंक भी हुई, जिससे सदन का माहौल गरमाया। एक बार तो विधानसभा अध्यक्ष को राजीव बिंदल सदस्यों को शांत करने के लिए अपनी सीट पर खड़ा होना पड़ा।
मुख्यमंत्री ने संसद द्वारा पारित 126वां संशोधन विधेयक के अनुसर्मथन के संकल्प का प्रस्ताव रखते हुए कहा कि इस विधेयक के तहत 25 जनवरी 2020 को समाप्त होने वाले आरक्षण प्रस्ताव को दस वर्ष बढ़ाने के लिए राज्यों के सदनों से पारित प्रस्ताव की मंजूरी लेना आवश्यक है। विधेय पर चर्चा के दौरान सत्तापक्ष व विपक्षी सदस्यों ने एक दूसरे पर तीखे प्रहार किए और कई बार सदन में तनाव की स्थिति दिखी। चर्चा में हिस्सा लेते हुए समाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री राजीव सहजल ने अगर देश की पुरातन संस्कृति का सही अध्ययन किया गया होता, तो ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न नहीं होतीं। संत कबीर सहित कई महापुरूषों का उल्लेख करते हुए सहजल ने कहा कि संत समाज ने असमानता को खत्म करने की दिशा में महत्वपूर्ण काम किया है।
सहजल ने कहा कि समाज में एक समानता लाने के लिए अभी भी बहुत कुछ करने की जरूरत है। सहजन ने जब यह कहा कि वे भाजपा विधायक विनोद के साथ मंडी में एक कार्यक्रम में शामिल होने गए थे, तो वहां एक मंदिर में प्रवेश करने से उन्हें रोक दिया गया। तो सदन के सभी सदस्य हैरत में पड़ गए। विपक्ष की तरफ से जब यह कहा गया कि आरएसएस आरक्षण के खिलाफ थी, तो न केवल सतापक्ष के विधायकों के साथ-साथ मुख्यमंत्री ने विपक्ष पर पलटवार किया।
आरएसएस का देश की आजादी के साथ समाज में समरसता पैदा करने के योगदान का उल्लेख किया। चर्चा का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि समाज में समानता व समरसता लाने के लिए संविधान सभा ने अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए आरक्षण का प्रावधान किया था। आरक्षण बीते सात दशकों से चल रहा है और इस लंबी अवधि के दौरान काफी परिवर्तन भी आया है। मगर अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि अनुसूचित जाति व जनजाती के लोगों को मुख्य धारा में लाने के लिए संविधान सभा ने इस विधेयक को लाया था। अभी भी अनुसूचित जाति व जनजाती के कई मंदिरों में अनुसूचित जाति के लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध है। भोजन में अनुसूचित जाति के लोगों के लिए अलग पंगत लगाई जाती है। आजादी के 70 साल बाद भी आज आरक्षण की आवश्यकता महसूस की जा रही है। आरएसएस को आरक्षण का विरोधी करार देने पर मुख्यमंत्री ने कांग्रेस विधायकों को लताड़ लगाई और कहा कि आरएसएस का देश की आजादी और समाज में समरसता लाने में अहम भूमिका रही है। कहा कि आरएसएस की स्थापना वर्ष 1925 में हुई और वो समाज में समरसता पैदा करने के एजेंडे पर काम करी है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने एक बार आरएसएस के कार्यक्रम में शिरकत की थी। जहां महात्मा गांधी यह देखकर दंग रह गए थे कि स्वयंसेवक अपनी जाति को दरकिनार कर एक साथ भोजन ग्रहण कर रहे हैं। मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 26 जनवरी 1963 की परेड में आरएसएस को न्यौता दिया था और कहा था कि उनका देश की आजादी में बड़ा योगदान रहा है।
नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने कहा कि वह आरक्षण बढ़ाये जाने के इस ऐतिहासिक प्रस्ताव का समर्थन करते हैं। उन्होंने कहा कि हमारी पार्टी और हम हमेशा से इसके समर्थन में रहे हैं। इस संशोधन विधेयक का असली मकसद राजनीतिक अधिकारों को बराबर करना है। यह आरक्षण बीते 70 सालों से चल रहा है। इस आरक्षण की वजह से ही अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों को विधानसभा में प्रतिनिधित्व करने का मौका मिलता है। उन्होेंने कहा कि हिमाचल विधानसभा में वर्तमान में 17 अनुसूचित जाति व 3 अनुसूचित जनजाति के विधायक हैं। अग्निहोत्री ने कहा कि अभी भी अनुसूचित जाति व जनजातीय के लोगों के साथ भेदभाव के मामले सामने आ रहे है। दलित बच्चों को मिड-डे मील के खाने में अलग बिठाया जाता है।
चर्चा में हिस्सा लेते हुए माकपा के राकेश सिंघा ने कहा कि एससी व एसटी वर्ग अभी भी पिछड़े हुए हैं। इनके विकास के लिए सरकार को गंभीर प्रयास करने चाहिए। आज के दौर में भी अनुसचित जाति के लोगों के साथ भेदभाव की घटनाएं शर्मनाक हैं। इन जाति के लोगों को मदिरों में जाने से रोका जाता है। भाजपा के राकेश पठानिया ने चर्चा में हिस्सा लेते हुए कहा कि अनुसूचित जाति व जनजाति के वर्ग को पूरा सम्मान व न्याय आज तक नहीं मिल पाया और इसके लिए कांग्रेस जिम्मेदार है। कांग्रेस पार्टी आरक्षण व अनुसूचित जाति व जनजाति के वर्ग की हितैषी बनने की बात तो करती है। मगर इन वर्गों के लिए उसने कुछ नहीं किया। इसी कारण आरक्षण को बढ़ाने की जरूरत महसूस की जा रही है।
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