सोलन : आज से लगभग 20 वर्ष पहले एक बालक चायल कोटि के समीप अपने गांव झण्डी से सोलन (शामती) आया, ताकि वह शहर में रह रहे अपने बाबू जी की देख-रेख में अपनी स्कूली शिक्षा ग्रहण कर सके। उस बालक का नाम सत्या नन्द था, जो आगे चलकर अपने सृजन और लेखन के लिए अपने पेन नेम सत्यन के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अपनी पोस्ट स्कूलिंग बॉयज स्कूल सोलन से विज्ञान संकाय में उतीर्ण करने के पश्चात, सत्यन अपने युवादिल सपनों को साकार करने की संभावनाओं को तलाशने में लग गए। जब सत्यन अपने करियर के दोराहे पे खड़े थे, जहां एक रास्ता पारम्परिक शिक्षा ग्रहण कर अच्छी नौकरी पेशे की ओर जाता था वहीं दूसरा लीक से हट के कुछ करने की ओर।
तभी इस युवा का परिचय एक भारतीय मूल के जर्मनी प्रतिष्ठित वैज्ञानिक डॉ. सतीश कुमार शुक्ला से हुआ जो कि पेशे से अनुसंधान विद्वान एवं वैज्ञानिक थे और शौक से एक सर्जक और लेखक। डॉ. शुक्ला से मुलाकात ने सत्यन के भीतर साहित्य की संवेदनाओं को और गहरा किया तथा सृजन के लिए प्रेरित किया। सत्यन डॉ. शुक्ला की विद्वता, राष्ट्र प्रेम एवं राष्ट्र समझ से खासे प्रभावित हुए। जिसके चलते सत्यन को अपने इस जीवन निर्णय को बल मिला कि वे विदेशों में हाई सैलॅरीड जॉब पाने की बजाय भारत में रहकर अपने देश सेवा एवं मानव सेवा करेंगे।
सत्यन कहते हैं कि जब वह अपने देश में सदिच्छा और समर्पण की भावना से सत्यसेवा के मार्ग पर आगे बढ़े तो पग-पग पर कचरा, दूराचार और भ्रष्टाचार की गंदगी से सामना होता चला गया। वह अस्वच्छता देख न सके तो इसे साफ करने का अपने जीवन का उद्देश्य बनाया। विद्रोह नहीं, आग्रह के माध्यम से स्वच्छता को देश सेवा का साधन बना लिया। अपने देश सेवा के सपने को साकार करने के लिए सत्यन ने सोलन में स्कूल ऑफ लेंगुएजिज़ की स्थापना की। स्पष्ट उद्देश्य यह था कि बच्चों में भाषाओं (अंग्रेजी, फ्रैंच आदि) के माध्यम से स्वच्छता जैसे मूल्य का विकास करना तथा उनमें मानव सेवा का जज़्बा पैदा कर उन्हें देश के ईमानदार नागरिक बनाना। इस स्कूल में बच्चों को कम्युनिकेशन स्किल या तो मुफ्त या बहुत कम पैसे लेकर सिखाई जाती है।
बहुभाषीय व्यक्तित्व के धनी सत्यन पिछले 15 वर्षों में 40 हजार से अधिक विद्यार्थियों को स्किल्स एवं वैल्यूज बेस्ड एजुकेशन दे चुके हैं। सत्यन बताते है कि बाद में उनके स्वच्छताग्रह आंदोलन को भारत के प्रधानमंत्री द्वारा चलाए गए स्वच्छ भारत अभियान से सम्भवत: एक व्यापकता मिली है, लेकिन इस व्यापकता को व्यवहारिकता में बदलने में चुनौतियाँ भी बढ़ी हैं। सत्यन ने लगभग 10 वर्ष पूर्व भारत को स्वच्छ बनाने के उद्देश्य से शिक्षा क्रांति एनजीओ की स्थापना की। तब से लेकर आज तक सत्यन अपने मित्र स्वयंसेवियों के साथ अपने दिल और दिमाग से ही नहीं बल्कि हाथों से भी सफाई अभियान में कार्यरत हैं। सत्यन स्वयं को सोशल वर्कर नहीं बल्कि सैनिट्री वर्कर मानते हैं।
संस्था का विजन, जहां स्वच्छता को व्यापक अर्थों में राष्ट्रीय मूल्य बनाना है, वहीं इसका मिशन सार्वजनिक स्थानों से कचरा साफ करना तथा वृक्षारोपण करना प्रमुख है। पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त और समाज को भ्रष्टाचार मुक्त बनाना है। सत्यन अपनी संस्था के साथ हिमाचल प्रदेश के अलावा हिंदुस्तान के अनेक हिस्सों पंजाब, दिल्ली और राजस्थान आदि में सफाई अभियान तथा वृक्षारोपण कर चुके हैं। व्यक्तिगत स्तर पर सत्यन सफाई के काम को हर रोज 8 से 10 घंटे देते हैं। संस्थागत तौर पर वे साप्ताहिक एवं मासिक स्वच्छता गतिविधियां करते हैं। सत्यन को अपने युवा साथियों के साथ स्थानीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार मिल चुके हैं।
युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय भारत सरकार द्वारा वर्ष 2017-18 में नेहरू युवा केंद्र के तहत करवाई गई समाज सेवा के लिए प्रतिस्पर्धा में सत्यन एवं युवा साथियों को हिमाचल प्रदेश में प्रथम पुस्कार से नवाजा गया है। सत्यन सरकार द्वारा चलाए जा रहे अनेक स्वच्छता जागरुकता कार्यक्रमों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आ रहे हैं। उदाहरण के लिए हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा हाल ही में चलाए गए नशा उन्मूलन मासिक अभियान के अंतर्गत सत्यन युनिवर्सिटी, कॉलेज, स्कूल एवं विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में रिसोर्स पर्सन के रूप में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। नशा, दूराचार एवं भ्रष्टाचार को मानसिक गंदगी मानते हुए सत्यन इसे साफ करने के लिए सबसे आग्रह करते हैं।
स्वच्छता को एक जनांदोलन बनाने के लिए आग्रह के मार्ग पर निरंतर आगे बढ़ रहे हैं, क्योंकि सत्यन का मानना है कि सफाई कभी भी विद्रोह या लड़ाई से नहीं आ सकती। अपनी स्वच्छताग्रह मुहीम, जिसे वे स्वच्छ भारत का व्यवहारिक अंग मानते हैं। अब तक हिमाचल प्रदेश के सैंकड़ो शिक्षण संस्थानों में सफाई अभियान एवं हस्ताक्षर सहयोग जैसी अनेक स्वच्छता गतिविधियां कर चुके हैं। जनता भी तन-मन-धन से इनके स्वच्छताग्रह अभियान में सहयोग दे रही है।
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