नाहन : 1621 में बसे शहर की पहचान सैरगाहों व तालाबों से होती है। लेकिन एक तथ्य यह भी है कि शहर में शतकों पुराने पेड़ों की अहमियत भी अपनी है। चौगान मैदान के समीप बरगद का पेड़ अपने दामन में शहर का स्वर्णिम इतिहास समेटे है। इसी तरह बड़ा चौक व छोटा चौक के अलावा भी दर्जनों ऐसे स्थान हैं, जहां बरगद व पीपल के पेड़ शान से खडे हैं। लेकिन अब एक आम चर्चा सामने आने लगी है। इसके तहत विशालकाय पेड़ों को गिराने के लिए साजिश रची जाती है।
इसमें ऐसी जगहों को निशाने पर रखा जाता है, जहां इन पेड़ों के हटने से कोई मुनाफा हो। ताजा मामला, गुन्नुघाट में लहरा रहे नीम के पेड़ से जुड़ा हुआ है। एमबीएम न्यूज नेटवर्क को जब बताया गया तो मुआयना करने पर पाया गया कि पेड़ की छाल को भी खुरचा गया है। साथ ही जड़ में कुछ रसायन के अंश भी मिले। यह वो पेड़ है, जिसने शहर के हजारों लोगों को अलग-अलग बीमारियों के इलाज के लिए अपने बेशकीमती पत्ते दिए होंगे। अगर यह मान भी लिया जाए कि पेड़ को गिराने की साजिश नहीं हो रही तो भी यह सवाल उठता है कि नगर परिषद द्वारा इन पेड़ों के संरक्षण के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं।
पेड़ की बदकिस्मती यह है कि जब लगा होगा, तब इक्का-दुक्का व्यक्ति ही इन जगहों से गुजरता होगा। लेकिन अब वक्त बदला है तो हर कोई यह सोचता है कि पेड़ हट जाता तो इस जगह बैठकर चांदी कूट लेता। दीगर बात यह है कि कुछ साल पहले नया बाजार में भी एक बरगद के विशालकाय पेड़ के अचानक गिर जाने की वजह यही मानी गई थी कि तेजाब डाल कर पेड़ को धीमी मौत दे दी गई। इससे आहत होकर नया बाजार निवासी दीपक अग्रवाल ने बरगद के पेड़ को रोपा था, जिसकी देखभाल खुद कई सालों से कर रहे हैं।
लगभग चार दशक पहले चौगान मैदान के समीप महलात की घाटी के छोर पर एक पीपल का पेड़ भी आधुनिकीकरण की भेंट चढ़ गया था। दीगर है कि रानीताल के समीप ज्योति पुंज ने अपने घर की दीवारों में ही गुल्लर के पेड़ को संरक्षित किया हुआ है।