मंडी : खारती, शायद हिमाचल प्रदेश के अधिकतर लोग इस शब्द से परिचित नहीं होंगे, लेकिन प्रदेश का जो चंगर क्षेत्र है, वहां के लोग इस शब्द को भली भांति जानते हैं। जल संग्रहण का यह सबसे बेहतरीन माध्यम आज मिटने की कगार पर पहुंच चुका है। लेकिन आईपीएच विभाग ने अब इसे पुर्नजीवित करने का बीड़ा उठाया है। क्या है खातरियां और कैसे होता था, इनमें जल संग्रहण, उसी पर पेश है। हिमाचल प्रदेश का चंगर क्षेत्र।
हालांकि अब हिमाचल जिलों में बंट चुका है लेकिन रियासतकाल में चंगर बहुत बड़ा क्षेत्र माना जाता था। इसमें हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा, हमीरपुर, बिलासपुर और मंडी जिलों का काफी बड़ा भाग आता है। मंडी जिला यह चंगर क्षेत्र उत्तराखंड के देहरादून तक फैला हुआ है। इस क्षेत्र में रियासतकाल से ही पानी की विकराल समस्या रही है। इस समस्या से पार पाने के लिए बुजुर्गों ने एक नायाब तरीका खोजा था और उसे नाम दिया गया था खातरी। लोग अपने घर के पास मौजूद छोटी-बड़ी पहाड़ी के नीचले हिस्से पर छेनी और हथौड़े की मदद से एक गड्ढा खोदते थे जिसे खातरी कहा जाता है।
यह खातरी कई फुट लंबी और गहरी होती थी। इसे बनाने में वर्षों लग जाते थे क्योंकि इसका निर्माण कार्य काफी बारिकी से करना पड़ता था। जब यह खातरी बनकर तैयार हो जाती थी तो इसमें वर्षा जल का संग्रहण किया जाता था। बारिश जब गिरती थी तो उस पहाड़ी पर गिरा पानी पूरी तरह से छनकर इस खातरी में जमा होता जाता था। बरसात के मौसम में जल संग्रहण के बाद इसका वर्ष भर इस्तेमाल किया जाता था। धर्मपुर क्षेत्र निवासी कृष्ण चंद पराशर बताते हैं कि चंगर क्षेत्र में कहावत है कि गंगा का पानी खराब हो सकता है लेकिन खातरी का पानी नहीं, क्योंकि यह पानी पूरी तरह से फिल्टर होकर आता है।
खातरी में जमा पानी का वर्ष भर बीना किसी डर से इस्तेमाल किया जा सकता था। इस क्षेत्र में पानी की समस्या इतनी विकराल होती थी कि जिस व्यक्ति ने अपने घर के पास खातरी बनाई होती थी वह उसमें ताला लगाकर रखता था। क्योंकि उन दिनों आभूषणों से ज्यादा डर पानी की चोरी का रहता था। ऐसा भी नहीं कि लोग अपनी खातरियों के पानी से दूसरों को मदद नहीं पहुचांते थे। गांव में यदि किसी के घर कोई शादी समारोह हो, या किसी ने मकान बनाना हो तो उसे जरूरत के हिसाब से पानी दिया जाता था।
ग्रामीण महिलाएं जोद्धया देवी और मथुरा देवी बताती हैं कि पहले इलाके में पानी की विकराल समस्या होती थी और इन खातरियों से ही पानी मुहैया हो पाता था। फिर दूर-दराज में मौजूद दूसरे प्राकृतिक जल स्त्रोतों से पानी ढोकर लाना पड़ता था। लेकिन आज घर द्वार तक पानी पहुंचने से यह समस्या हल हुई है। खातरियों का इस्तेमाल काफी कम हो गया है। यही कारण है कि आज यह खातरियां अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं। अब राज्य सरकार ने इस जल स्त्रोतों को पुर्नजीवित करने का बीड़ा उठाया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जल संरक्षण के आहवान के बाद हिमाचल प्रदेश के सिंचाई एवं जनस्वास्थ्य मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर ने इन खातरियों को साफ करने का अभियान छेड़ दिया है। चंगर क्षेत्र में जितनी भी खातरियां मिटने की कगार पर पहुंच चुकी हैं। उन्हें पुर्नजीवित करने के लिए विभाग ने पूरी योजना बना ली है। आईपीएच मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर का कहना है कि जल संग्रहण में खातरियों से बड़ा और कोई विकल्प नहीं, इसलिए इन्हें हर हाल में पुर्नजीवित करना है।
उन्होंने बताया कि खातरियों के साथ जो भी अन्य प्राकृतिक जल स्त्रोत हैं उनकी सफाई का अभियान छेड़ा गया है ताकि लोगों को इनके महत्व से अवगत करवाया जा सके। भविष्य में जरूरत पड़ने पर इनके पानी का भी इस्तेमाल किया जा सके। भविष्य में जल संकट विश्व के सामने सबसे बड़े संकट के रूप में उभरने वाला है। ऐसे में इस प्रकार के जलस्त्रोत अपनी अहम भूमिका निभा सकते हैं। इसलिए इनका संरक्षण जरूरी है ताकि भविष्य के संकट से पार पाने की अभी से तैयारी की जा सके।