कुल्लू : भुंतर के संकरे ब्रिज के जाम से किसान, बागवान, स्थानीय जनता, स्कूली बच्चे व देश-विदेश के पर्यटक बहुत दुखी हैं। हर 3 महीने के बाद पुल की प्लेटें टूट जाती हैं, जिससे यहां हमेशा बड़े हादसे होने का डर लगा रहता है। विभाग हर बार इसकी मरम्मत कर खानापूर्ति कर देता है। 24 साल से जनता अपने और पर्यटकों के हितों के लिए सरकार के नेताओ और सरकारी अमले से डबल लेन पुल की मांग कर रही हैं। बेखबर सरकारी तंत्र में जनता के हाथों में एक छूनछूना दे डाला है ।
भुंतर की जनता सामाजिक संगठन सहित अन्य संस्थाऐं धरना प्रदर्शन करती आई है, पर सरकार के लचीलेपन के आगे जनता ही बोनी बनकर आज भी अपने सपनों को साकार करने के लिए सरकारी तंत्र से संघर्ष कर रही है। जनता ने कोई सोने का महल सरकारी तंत्र से नहीं मांगा, बल्कि एक पुल की खस्ता हालत को देखते हुए भुंतर पुल की चौड़ाई को डबल लेन करने की एक छोटी सी मांग रखी है। किंतु भाजपा सरकार हो या कांग्रेस की सरकारें रही हो किसी ने इस पुल को डबल लेन करने की जहमत नहीं उठाई। जनता ने 2015 में पीएम मोदी, नितिन गडकरी तक भी नए पुल बनाने को लेकर गुहार लगाई और लगातार प्रयासरत है।
संघर्ष कर रहे लोग सीएम जयराम ठाकुर से भी मिले। लेकिन कागजी कार्रवाई के अलावा जमीनी स्तर पर कुछ नहीं हुआ। 24 साल बीत गए मगर सरकार कागजी कार्रवाई तक ही सिमट गई। आंदोलन करने वाले आज भी पुल का सपना संजोये हुए हैं। जनता पुल के सपने को अभी भी पाले हुए है कि सरकारी तंत्र शायद नींद से जागकर जनता की भावनाओ को स्वीकार करेगा। अभी तक सरकार इस पुल को चौड़ा तक नही कर पाई। भुंतर का यह पुल कई बार टूटा कई बार जुड़ा हाइडोरो प्रोजैक्ट का ट्रोला एक बार गिरते पुल पर भी लटक चुका है।
2017 में खस्ता हालत वाला पुराना पुल बदला लेकिन विभाग ने फिर अस्थाई ब्रिज ही लगाया जो बार-बार टूटने पर रिपेयर मांगता है। इस पुल की कहानी भी अजीब है 1995 में बाढ़ आई तो यहां से सड़क का नामोनिशान मिट गया, फिर सरकार ने अस्थाई पुल बना दिया। हजारो वाहनों, मालवाहक वाहनों के गुजरने से पुल का स्तर गिरने लगा, धीरे धीरे पुल खस्ता हालत में समाता गया। अब हालत ऐसी बन चुकी है कि हर 3 महीने के बाद इस पुल की मुरम्मत विभाग को करवानी पड़ती है। इस पुल से वाहनों का भार अत्यधिक है, गाड़ियों का काफिला बढ़ता जा रहा है, कुल्लु, मनाली, मणिकर्ण को जाने वाले वाहन इसी पुल से गुजरते है। बागवानों के मालवाहक वाहनों का सहारा भी यहीं पुल है। भारी टनों के मालवाहक वाहन प्रतिदिन आते जाते है। अब यह सिंगल लेन पुल कब तक सारा बोझ सहन करेगा।
सरकार इस पुल की तरफ ध्यान नही दे रही है। अब भुंतर के वरिष्ठ समाज सेवी व क्रांतिकारी पत्रकार मेघ सिंह कश्यप ने मजबूर होकर शिमला हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर डाली है। जनहित अपील पर हाईकोर्ट ने ब्यास पर बने बैली ब्रिज की डीसी कुल्लू व लोक निर्माण विभाग से जवाबदेही मांगी है। सरकार प्रशासन पुल की स्थिति स्पष्ट करके यहां डबल लेन पुल निर्माण करें। जनता 24 सालों सिंगल लेन ब्रिज के जाम से पीस रही है। वहीं बार-बार प्लेट व गाडर के टूटने से बड़े हादसे होने का खतरा बना रहता है।
वरिष्ठ समाज सेवी मेघ सिंह कश्यप के साथ सामाजिक संगठनों का सहयोग भी जुड़ा हुआ है। सरकार ने जब जनता की सुध नहीं ली तो मजबूरी में हाईकोर्ट की शरण मे यहां के लोगों को जाना पड़ा। हैरानी इस बात की भी है कि सरकार एक तरफ पर्यटन को बढ़ावा देने की बात कर रही है जब तक सड़के पुल जैसे जरूरी मार्ग ही खस्ता होंगे तो पर्यटक कैसे पहुंचे। अब बात इसी भुंतर पुल की करते है इसी पुल से मनाली से लेह-लदाख तक मणिकर्ण, मलाणा, कसोल जैसे स्थलों को गंतव्य मिलता है। सुंदर वादियों को निहारने देशी-विदेशी सभी पर्यटक आते-जाते हैं। जब पुल ही खस्ता हो और बार- बार टूट जाता है तो पर्यटन का कैसा विकास यहां होगा।