गज़़ल
अपने गेसुओं को शानों पर बिखराए हुए,
बैठे हैं वो फ़लक तक तलातुम उठाए हुए।
चेहरा फूल, बदन मुअतर, बातें मिसरी सी,
जहां भर की रानाईयां खुद में समाए हुए।
मुस्कुराए जाते हैं वो देखकर सूरत अपनी,
संगदिल हो के आईने से दिल लगाए हुए।
होश फना हो क्यों नए ख्वाहिशें जाग उठे,
तीर अपनी अदा के कुछ ऐसे चलाए हुये।
बहारों में तो आती है तन्हा बहारें लेकिन,
है खिज़ा में भी बातों से फूल महकाए हुये।
पंकज तन्हा, नाहन
काव्य संग्रह- शब्द तलवार है