शिमला (एमबीएम न्यूज): रोहडू क्षेत्र में सदियों से मनाया जाने वाला जागरा उत्सव बड़ी धुमधाम से मनाया गया। गणेश चतुर्थी को महासू देवता की रात को रोहडू क्षेत्र में जागरा उत्सव कहा जाता है। इस दिन क्षेत्र के लोग पूरी रात नाच-गाकर बिताते है। गणेश चतुर्थी की रात क्षेत्र मे जागरा उत्सव के रूप मनाई जाती है। दिन में महासू देवता एक साल बाद अपने मंदिर से बाहर निकलते हैं। देवालु लोग देवता महासू के दिन में शोभायात्रा के रूप स्नान के लिए पवित्र जल के पास ले जाते हैं।
इस दौरान देवता महासू के अस्त्र-शस्त्र भी बाहर निकाले जाते हैं। शोभा यात्रा के दौरान देवालु व बच्चे देवता के साथ नाच गाकर जाते हंै। इस दौरान रोहडू के स्थानीय देवता शिकडू भी साथ रहते हंै। इस दौरान देवता के गुर(माली) भी साथ होते है। देवता महासु के गुर(माली) अपने सर पर देवता महासु की प्रतिमा उठाकर स्नान के लिए ले जाते हैं।
जागरा उत्सव में रात को देवता महासू के गुर प्रकट होते हैं। साथ में लोग हाथों में लकड़ी की मशालें लेकर नाचते हुए चलते हंै व देवता महासू का गाना गाते रहते हैं। इस दौरान रोहडू के स्थानिय देवता शिकडू भी साथ रहते हंै। रात को फिर चिड़ा पूजन (लकड़ी के पेड़ को काट कर बनाई गई बड़ी मशाल) होता व चिड़ा जलाया जाता है। इसके बाद देवता महासू के गुर (माली) नाचते व पूरी रात लोग पारंपरिक नृत्य प्रस्तुत करते हैं। इस तरह जागरा मनाया जाता है।
इस बारे स्थानीय निवासी देवालु दुर्गाप्रसाद ने कहा जब क्षेत्र मे राक्षसों ने लोगों का जीना हराम कर रखा था तो महासू देवता व उनके चार भाईयों ने लोगों की रक्षा की। तब से जागरे उत्सव मनाने की परंपरा चली हुई है।