हमीरपुर : जब कमाऊ रूटों पर भी जीरो बुक वैल्यू की पुरानी खटारा बसें यात्रियों को ढोने में लगाई जाएंगी तो फिर एचआरटीसी की भीतरी व्यवस्था की हालत का खुद ही अंदाजा लगाया जा सकता है। पिछले दो साल से निगम के बेड़े में एक भी नई बस शामिल नहीं की गई है। इसका खामियाजा प्रदेश भर के तमाम डिपुओं को भुगतना पड़ रहा है। मगर डिपो में यदि 47 सीटर 55 बसों में से 35 शून्य बुक वैल्यू की हो जाएं, तो फिर दिल्ली, कटरा, हरिद्वार, चंडीगढ़, अमृतसर, लुधियाना, रूट्स पर ऐसी ही खटारा बसों को भेजने की मजबूरी निगम के कर्ताधर्ताओं की बन जाएगी।
9 लाख किलोमीटर का सफर तय कर चुकी निगम की 47 सीटर बसें पिछले लंबे समय से लगातार लंबे रूट्स पर यात्रियों को ढोने में लगाई गई हैं। वे भी तब, जब कईं पड़ोसी राज्यों की बसें हिमाचल में नए अंदाज में अब यात्रियों को अपनी ओर आकर्षित कर रही हैं। सीटीयू ने तो करीब 15 बसें हिमाचल में एसी कैटेगरी की शुरू कर दी हैं। जिसका खामियाजा भी एचआरटीसी को भुगतना पड़ रहा है। क्योंकि उनमें मात्र 20 फीसदी एक्स्ट्रा किराए के साथ वे यात्रियों को ले जा रहे हैं।
डिपो में 54 ड्राइवर, 68 कंडक्टर, 47 मिस्त्री और 24 दफ्तरी स्टाफ ही कम हो, तो फिर बात कैसे बनेगी। यही स्थिति अन्य प्रमुख पदों की भी है। जिनमें ट्रैफिक मैनेजर, डब्ल्यूएम, एफएम, जेटीओ, एसएसआई यानी सर्विस स्टेशन इंचार्ज और चीफ इंस्पेक्टर जैसे महत्वपूर्ण पदों को पिछले लंबे समय से भरने की कवायद ही ना की गई हो, तो फिर डिपो की हालत सुधरेगी कैसे, जवाबदेही सुनिश्चित होगी कैसे? परिवहन मंत्री को भीतरी व्यवस्था की इन खामियों को सुधारने के लिए तत्काल प्रभाव से कदम उठाना चाहिए।
कायदे में लॉन्ग रूट्स पर जीरो बुक वैल्यू की बसें इसलिए नहीं भेजी जाती हैं। क्योंकि यह तमाम रूट कमाऊ श्रेणी में आते हैं। यदि बसें ब्रेकडाउन होना शुरू हो जाएं, तो फिर इसका खामियाजा एचआरटीसी को भुगतना पड़ता है। लोगों का विश्वास उठता है। इसीलिए आमतौर पर मजबूरी में जीरो बुक वैल्यू वाली बसों को लोकल रूट्स पर ही रखा जाता है।
50 बसें नीले रंग की जो प्रदेश से बाहर नहीं जा सकती
डिपो की ही बात ले लीजिए, यहां कुल 152 छोटी बड़ी तमाम तरह की बसें हैं। जिनमें 50 बसें नीले रंग वाली हैं, जो हिमाचल से बाहर जा नहीं सकतीं। शेष 102 बसों में 37 सीटर बसों की संख्या 47 है। 47 सीटर की 55 बसों में यदि 37 बसें जीरो बुक वैल्यू ही हो जाएगी, तो फिर काम कैसे चलेगा। लंबे रूट पर जाने वाले यात्रियों को बेहतर सुविधा कैसे मिल पाएगी।
प्रतिस्पर्धा के इस युग में एचआरटीसी की व्यवस्था में सुधार नहीं हुआ, तो उसके कई कमाऊ रूट इस खामी के शिकार की वजह से नुकसान में जा सकते हैं। कई पुराने रूट्स पर इसका असर अब दिखने लगा है। क्योंकि उनके आगे-पीछे बेहतर सुविधा वाले दूसरे राज्यों की बसें शुरू हो चुकी हैं।