नाहन : समूचे उत्तर भारत में शहर की पतंगबाजी अपनी एक विशेष पहचान रखती है। समय के थपेड़ों व आधुनिकता के दौर में अब रक्षाबंधन के मौके पर पतंगबाजी की परंपरा समाप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी है। इससे जुड़ी खास बातें…
1. ऐसा माना जाता है कि शहर में पतंगबाजी लगभग 163 साल पहले तत्कालीन शासक शमशेर प्रकाश के वक्त शुरू हुई थी, जिन्होंने सिरमौर रियासत पर 1856 से 1898 तक शासन किया। इस अवधि में पतंगबाजी की शुरूआत मानी जाती है।
2. अमूमन देश के अन्य हिस्सों में आसमान में पतंगों के पेंच के दौरान डोर को खींचकर पतंग काटा जाता है, लेकिन यहां डोर को ढील दी जाती है।
3. डोर का मांझा तैयार करने की विशेष विधि थी। इसमें टयूब के कांच को पीसकर अन्य सामग्री मिलाई जाती थी। दशकों से इस तरीके से डोर तैयार नहीं होती है।
4. हालांकि रक्षाबंधन के पर्व पर पतंगबाजी होती है, लेकिन इसकी धमक कम हो चुकी है। चीन की बनी खतरनाक डोर का इस्तेमाल किया जाने लगा है। इस पर कुछ साल पहले प्रशासन ने सख्ती भी दिखाई थी।
5. ऐतिहासिक चौगान मैदान में पतंगबाजी इकट्ठे होकर पूरा दिन ही लगाते थे। लेकिन अब एक भी व्यक्ति मैदान में पतंग उड़ाता नहीं दिखता।
6. शासक शमशेर प्रकाश का जो पतंग काटने में कामयाब होता था, उसे ईनाम से लाद दिया जाता था। इसके अलावा शासक के पतंग को लूटने वाले को भी पुरस्कृत किया जाता था।
7. पतंगबाजी के लिए बैरिंग वाली चरखियां एक अलग पहचान रखती थी। इसमें पतंग कटने की सूरत मंे डोर को वापस लपेटना बेहद ही आसान था।
8. बाजार से मिलने वाली डोर को बाजारी कहा जाता था। इस चरखी से डोर को उंगलियों से लपेटना पड़ता था, जो बेहद ही जटिल होता था।
9. मालरोड़ पर पतंग बनाने वाले के घर पर ही खरीददारों का तांता लगा रहता था। धीरे-धीरे सहारनपुर व यमुनानगर से पतंग बाजार में पहुंचने लगे।
10. विरोधी का पतंग कटने पर खास तरह के नारे लगाए जाते थे। जिसमें विशेषकर बोलो बे छोकरो काटा हे… शामिल था।
11. 90 के दशक तक हरेक उम्र का व्यक्ति खासकर रक्षाबंधन के दिन पतंग उड़ाने के लिए छतों पर नजर आता था, लेकिन अब दो से तीन फीसदी बच्चे ही पतंग उड़ाने के शौकीन रह गए हैं।
12. शाही परिवार के सदस्य कंवर अजय बहादुर सिंह का कहना है कि महाराज शमशेर प्रकाश के लिए विशेष डोर का इंतजाम अमरदराज द्वारा बनाई जाती थी।
13. समूचे देश में नाहन शहर ही ऐसा होगा, जहां रक्षाबंधन के दिन पतंगबाजी होती है।
14 रोचक बात यह भी है कि यहां पतंगबाजी बारिश के मौसम में होती है। उपरली हवा-निचली हवा का पतंगबाजी पर खासा असर रहता था।