एमबीएम न्यूज़/शिमला
सर्दियों के मौसम में हिमाचल प्रदेश में तरड़ी नामक जंगली कंद हिमाचल प्रदेश के कुछ बाजारों में बहुत थोड़ी मात्रा में बिकने को पहुंचता है। बेशक मध्य प्रदेश में इस कन्द की सालाना खेती की जाती है तथा सब्जी मंडियों में इसकी भारी मांग रहती है, लेकिन अभी तक हिमाचल प्रदेश में इसे वाणिज्यिक फसल का दर्जा हासिल नहीं हुआ है। प्रदेश में व्यवसायिक स्तर पर अभी तक कहीं भी तरड़ी की खेती की पहल नहीं हुई है। हालांकि कई गांवों में लोग इसे थोड़ा-बहुत घरों के आस-पास खेतों में लगाते हैं तथा इस अति स्वादिष्ट व्यंजन का आनंद उठाते हैं।
तरड़ी के औषधीय गुणों को देखते हुए बाजार में इसकी भारी मांग होने के कारण अगर व्यर्थ जमीन पर सही तरीके से इसकी खेती की जाए तो किसान के लिए मेंड़ों या बेकार जमीन से आमदन के साधन बढ़ सकते हैं। पहाड़ के किसान तरड़ी की खेती कर मालामाल हो सकते हैं। तरड़ी के बीज बेल पर ही लग कर बेल सूखने पर नीचे गिर जाते हैं। इन बीजों को अगर पॉलीथीन की परत पर मिट्टी डाल कर लाइन में उगाया जाए तो किसान इस फसल से अच्छी आमदन कमा सकते हैं। इस कंद के पूरी तरह से जैविक होने के कारण बाजार में इसकी भारी मांग रहती है और काफी अच्छा भाव मिलता है।
एक कन्द के रूप में हिमाचल प्रदेश व देश के अन्य भागों उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड व जम्मू कश्मीर आदि में पाया जाता है। यह कन्द ज्यादातर सर्दियों के दिनों में सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है। तरड़ी कन्द अति स्वादिष्ट होने के साथ अति बलवर्धक व सेहत के लिए बहुत ही गुणकारी होता है। यह कन्द जंगल में भी पैदा होता है, वहीं खेती के रूप में भी उगाया जा सकता है। इसके पौधे बेलनुमा होते हैं तथा इस बेल के नीचे कन्द के रूप में तरड़ी नामक कन्द पाया जाता है, जिसे चाट बनाकर व सब्जी के रूप में खाया जाता है।
इस कन्द का पौराणिक कथाओं में भी वर्णन मिलता है। इस कन्द का सम्बन्ध महादेव शिव की शिवरात्रि से माना जाता है। कहा जाता है कि यह कन्द भगवान शिव के प्रिय फलाहारों में आता है तथा शिवरात्रि के समय खुद व खुद जमीन से ऊपर आ जाता है। आयुर्वेद में भी इस कन्द की महिमा का वर्णन है। इस कन्द में कई औषधीय गुण मौजूद होते है, जिस कारण इस कन्द का औषधीय महत्व भी बहुत ज्यादा है। इस कन्द में बहुत ज्यादा मात्रा में जरुरी तत्वों के अलावा, बिटामिन बी ग्रुप व फोस्फेट्स कैल्शियम, जिंक आयरन व क्रोमियम पाया जाता है।
यह कुदरती आहार मानव शरीर के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है। हिमाचल प्रदेश में अगर तरड़ी की व्यवसायिक खेती की पहल हो तो यहां के किसानों की कृषि आर्थिकी मजबूत हो सकती है, वर्ना अवैज्ञानिक व अन्धाधुंध दोहन से जंगलों में पैदा होने वाले इस कन्द के वजूद पर खतरा है।
समाचार व फोटो साभार : फोकस हिमाचल