रेणु कश्यप/नाहन
यकीन करना मुश्किल हो सकता है, मगर वास्तविकता है कि तीसरी कक्षा में पढ़ रहा हर्षित शर्मा अपने पिता को बागवानी व खेती को लेकर प्रेरित करता रहा है। अचानक ही यू-टयूब पर अपने 36 वर्षीय पिता चमन को केसर की खेती करने का सुझाव दे बैठा। पिता को बात जंची तो इसके लिए बीज की तलाश शुरू कर दी। हरियाणा के रादौर पहुंचकर इसका इंतजाम कर लिया गया। सैनधार के संदडाह गांव में चमन के खेत केसरिया हो गए हैं, क्योंकि चारों तरफ केसर की महक बिखरी हुई है। अब तक 8 से 10 किलो केसर का तुड़ान कर चुके हैं। अब भी फूल खिले हुए हैं। कुदरत ने भी इस साल चमन पर खासी मेहर रखी। मई के महीने में भी गर्मी का अहसास नहीं हुआ।
एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत में चमन शर्मा का कहना था कि नाहन के डीएवी स्कूल में पढ़ रहा बेटा रोजाना ही उन्हें लीची, आम व गन्ना इत्यादि लगाने के लिए प्रेरित करता था। अचानक ही उसने एक दिन केसर लगाने को कहा। हालांकि इस साल दो महीने देरी से केसर की बिजाई की गई, जो सितंबर में होनी चाहिए थी, लेकिन उन्होंने 8 दिसंबर के आसपास केसर को रोपित किया। उन्होंने यह भी बताया कि हर किसी की खुशी का उस वक्त ठिकाना नहीं रहा, जब पौधों में फूल खिलने के बाद अब फसल तैयार हो गई है। उन्होंने यह भी कहा कि घर में केसर की महक बिखरी हुई है, इसे सुखाने का कार्य भी चल रहा है।
उधर नामी पंडित रूप दत्त शर्मा ने भी अपने भांजे चमन शर्मा की मदद से दीद बगड़ पंचायत के चंबियाना गांव में केसर लगाया। पंडित रूप दत्त का कहना है कि उन्हें 300 ग्राम के आसपास ही उत्पादन मिला है, लेकिन अगली बार के लिए खासा अनुभव मिल गया है। उल्लेखनीय है कि कुछ सप्ताह पहले बिलासपुर में भी केसर की खेती से जुड़ी खबर आई थी। मगर सिरमौर के युवा प्रगतिशील किसान ने अपनी अन्य जिम्मेदारियों के अलावा केसर उगाकर उन लोगों के लिए एक मिसाल पेश की है, जो खेती के पेशे से विमुख हो रहे हैं।
ऐसे रखा खेतों को कीटमुक्त…
यू-टयूब पर सर्च कर यह जानकारी जुटाई गई थी कि केसर की कीटमुक्त रखने के लिए क्या उपाय होने चाहिए। फिर पता चला कि नीम के पत्तों, अदरक के अर्क के अलावा गौमूत्र इत्यादि के मिश्रण से तैयार स्प्रे को छिड़का जाना चाहिए।