वी कुमार/मंडी
कौन नहीं चाहता कि उसकी लग्ज़री गाड़ी पर वीआईपी नंबर हो। वीआईपी नंबर से जहां कार की शान बनती है, वहीं इस नंबर की ठसक अलग ही अहसास भी करवाती है। लेकिन प्रदेश में वीआईपी नंबर लेना कितना पेचिदा है, यह हम आपको इस रिपोर्ट के माध्यम से बताएंगे। मंडी जिला के सुंदरनगर निवासी पत्रकार अश्वनी सैनी को वीआईपी नंबर लेने की ठसक चढ़ गई। वर्ष 2012 में लग्ज़री कार खरीदी और इसके लिए वीआईपी नंबर 0001 के लिए आवदेन कर दिया। उस वक्त प्रदेश में पहले आओ और पहले पाओ के आधार पर वीआईपी नंबर दिए जाते थे। इसके लिए आवेदक से एक लाख की राशि भी ली जाती थी।
अश्वनी सैनी 0001 नंबर के लिए एसडीएम सुंदरनगर, मंडी और देहरा के दरबार पहुंचे, लेकिन किसी ने इन्हें वीआईपी नंबर नहीं दिया। अश्वनी के साथ सभी आनकानी करते रहे और वीआईपी नंबर दूसरों को ही जारी होते रहे। ऐसे में अश्वनी हाईकोर्ट की शरण में चले गए। 13 नवंबर 2014 को हाईकोर्ट ने परिवहन विभाग को निर्देश दिए कि अश्वनी सैनी को वीआईपी नंबर जारी किया जाए और अश्वनी सैनी को इसके लिए फिर से आवेदन करने को कहा। लेकिन हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी परिवहन विभाग ने नंबर जारी नहीं किया। 24सितंबर 2015 को राज्य सरकार ने अधिसूचना जारी करके 0001 से 0010 तक के सभी नंबर सरकारी वाहनों के लिए आरक्षित कर दिए।
अश्वनी सैनी का कहना है कि उन्हें हाईकोर्ट ने 2014 में वीआईपी नंबर देने का आदेश परिवहन विभाग को दिया था। इस आधार पर उनका वीआईपी नंबर पर हक बनता है और इस हक को पाने के लिए वह फिर से हाईकोर्ट की शरण में जाने का मन बना चुके हैं। यही कारण है कि वीआईपी नंबर के चक्कर में उनकी कार बीते 6 वर्षों से टैंपरेरी नंबर पर ही चल रही है। वहीं सरकार ने इन नंबरों को आरक्षित करके एक तरह से अपने राजस्व को कम कर दिया है।
हालांकि सरकारी वाहनों को भी यह नंबर 1 लाख रूपए में दिए जा रहे हैं लेकिन सरकार का यह पैसा एक जेब से निकालकर दूसरी जेब में डाला जा रहा है जबकि अतिरिक्त कोई आय सरकार को नहीं आ रही है। वहीं सरकार ने11 से 100 तक के नंबरों को आम लोगों के लिए रखा है, लेकिन इसके लिए आम लोगों को एक लाख अदा करने पड़ते हैं। अश्वनी सैनी का मानना है कि सरकार ने गलत नीति बनाई है और इससे सरकार को ही करोड़ों का घाटा हो रहा है।
अश्वनी ने आरटीआई से जो जानकारी जुटाई है उसके तहत प्रदेश में नई सीरीज जारी होने के बाद बहुत से वीआईपी नंबर अभी तक ऐसे ही पड़े हैं। यदि सरकार इन्हें आम लोगों के लिए जारी कर देती है तो इससे सरकार को आय प्राप्त होगी और आम लोगों को वीआईपी नंबर मिल सकेंगे।