सुभाष कुमार गौतम/घुमारवीं
हिमाचल में दिन-प्रतिदिन एक भारी समस्या पैदा हो रही है जो हिमाचल जैसे शांत व प्रदूषण रहित प्रदेश के लिए खतरा बनती जा रही है। इसका कारण किसानी व बागवानी से निकले वेस्ट व खरपतवार का जलाकर निष्पादन करना है। जिसके कारण कई घातक बीमारियां हिमाचल के वातावरण को प्रदूषित कर रही है। यह समस्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इस कारण वातावरण में कई तरह की गैसें पैदा हो रही है। जो आधुनिक समय में अस्थमा, किडनी फेलियर, हार्ट अटैक, कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां फैला रहा है। किसान अच्छी फसल लेने के लिए ज़हरीली दवाईयों का छिड़काव कर रहे है। ये ज़हरीली दवाइयां इतनी घातक है कि अगर कोई स्प्रे के बाद खेत में उगने वाली चीजों को खा ले तो उसकी मौत भी हो सकती है।
इन हानिकारक दवाईयों के स्प्रे का असर फसलों में पैदा हुए खरपतवार पर भी होता है। इससे भी खतरनाक पहलू पहाड़ी इलाकों में देखने में आया है। जहां सेब, अनार जैसे पेडों पर अच्छी पैदावार के लिए 10-14 बार तक घातक दवाईयों का स्प्रे किया जाता है। अगले साल के लिए बगीचों में अच्छी फसल के लिए टहनियों की कटिंग की जाती है, जो कृषि व बागवान विशेषज्ञों अधिकारियों द्वारा और भी हानिकारक माना जाता है। बिलासपुर के कृषि विशेषज्ञ अधिकारी रवि शर्मा का कहना है कि खेतीबाड़ी व बागीचों से निकाले गए खरपतवार, सेब व अनार अन्य पेडों की टहनियों को जलाना नहीं चाहिए।
इनके कारण भयानक बीमारियां पैदा हो रही है। हमारा पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। पेडों की टहनियों को सुखा कर घरो में चूल्हे मे जलाना चाहिए। खरपतवार को ढेर लगाकर प्राकृतिक खाद बनाने में प्रयोग किया जाना चाहिए, ताकि वातावरण सुरक्षित रहे और आम आदमी भयानक बीमारियों से बच सके। इसके लिए बागीचों से निकले वेस्ट टहनियों व खेती से निकले खरपतवार का खुले में जलाकर सही तरीके से निष्पादन किया जाना चाहिए।