एमबीएम न्यूज़/शिमला
रैबीज के उपचार को लेकर एडवांस शोध करने पर प्रदेश के नामी चिकित्सक डॉ. उमेश भारती को अपने जन्मदिवस पर बेहतरीन तोहफा मिला है। दरअसल नेहरू सिद्धांत केंद्र ट्रस्ट द्वारा डॉ भारती को सतपाल मित्तल नेशनल अवॉर्ड से अलंकृत किया गया है। खास बात यह रही कि यह पुरस्कार डॉ. भारती को चीफ ऑफ द आर्मी स्टाफ जनरल बिपिन रावत के हाथों से लुधियाना में हासिल हुआ है।
यह है डॉ. उमेश भारती की सफलता….
पागल कुत्ते व बंदर के काटने पर मरीजों का इलाज सस्ता होगा। 30 से 35 हजार के बीच होने वाला इलाज मात्र 350 से 400 रुपए में संभव हो जाएगा। इस उपलब्धि का सूत्रधार खुद हिमाचली बेटा डॉ. उमेश भारती (50) बना है। इस वक्त स्टेट मास्टर ट्रेनर इंट्राडर्मल एंटी रैबीज वैक्सीनेशन के कार्यक्रम अधिकारी के पद पर तैनात हैं।
अहम बात यह है कि डॉ. भारती के शोध रैबीज इम्युनोग्लोबुलिन सिरम को घाव पर लगाने को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने मान्यता दे दी है। डॉ. भारती की खोज के शोध से इलाज पर कम खर्च तो होगा ही, साथ ही सिरम की भी बचत होगी।
पागल कुत्ते व बंदर के काटने पर एंटी रैबीज वैक्सीन को त्वचा पर लगाने के अलावा सिरम को घाव व मांसपेशियों में लगाया जाता था। लेकिन डॉ. भारती ने अपने शोध में साबित किया है कि रैबीज इम्युनोग्लोबुलिन सिरम को सिर्फ घाव पर लगाया जाए तो असर जल्दी होता है। साथ ही दवा की मात्रा भी कम लगती है।
डॉ. भारती तकरीबन 17 से 18 सालों से इस पर मेहनत कर रहे थे। उनका कहना है कि इस शोध के लिए स्वास्थ्य विभाग का पूरा सहयोग मिला। प्रदेश की बात की जाए तो हर साल बंदरों व कुत्तों के काटने के पांच हजार मामले आते हैं। राजधानी में ही रोजाना कुत्तों व बंदरों के काटने के 15 से 20 मामले सामने आते हैं। डॉ. भारती इस शोध में लगे थे, लेकिन सहयोग डॉ. (स्व.)मधूसुदना व डॉ. हेनरी वाइल्ड का भी रहा।
ऐसे पाई सफलता...
डॉ. उमेश भारती तकरीबन 17 साल से कार्य करते रहे। काफी मरीजों पर प्रयोग किया। 2014 में 269 मरीजों पर सिरम का प्रयोग किया तो सकारात्मक नतीजे आने शुरू हो गए। इससे डॉ. भारती को हौंसला मिला। सिरम के प्रयोग करने से मरीजों के खून में किसी भी तरह के वायरस ने प्रवेश नहीं किया। डॉ. भारती ने सस्ते इलाज के लिए अपने ही स्तर पर पुलिंग प्रणाली भी शुरू की थी। घाव पर सिरम लगने से मरीज की रिकवरी तेजी से होने लगी।
हिमाचल में शुरू हुआ था इलाज, अब पूरा देश अपनाएगा
बैंगलुरू के निम्हेंस से टैक्नीकल क्लीयरेंस के बाद इस सिरम का इस्तेमाल देश भर में हो सकेगा। हालंकि प्रदेश में इसका प्रयोग 2014 से किया जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की मान्यता के बाद पूरी दुनिया में इस सिरम का इस्तेमाल होगा। दरअसल सिरम को को घोड़े व इंसान के खून से बनाया जाता है। लिहाजा इसकी उपलब्धता काफी कम होती है। मांसपोशियों में लगाए जाने पर इसकी मात्रा तकरीबन 10 मिलीलीटर के आसपास रहती थी, जो अब घटकर मात्र एक मिली लीटर रह जाएगी। इसकी उपलब्धता व खर्च पर समूचे संसार में भारी गिरावट आएगी।
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