सुभाष कुमार गौतम/घुमारवीं
हिमाचल का पावन व पवित्र पर्व सैर नई फसल के आगमन व बरसात के जाने पर मनाई जाती है। एक महीने के बाद मां-बाप की लाडली जाती है। ससुराल में आपसी पावन रिश्तों की महक बिखेरती सैर हिमाचल प्रदेश में त्यौहार के रूप मनाए जाते हैं, जिनमें हिमाचल की संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। यूं तो यह पूरे हिमाचल में मनाया जाता है।
मगर बिलासपुर, मंडी, कांगडा, हमीरपुर, सोलन और मंडी में इसका खास महत्त्व है। इस परंपरा के अनुसार आज भी मंडी जिला में रक्षा बंधन को बांधी गई राखी को आज के दिन कलाई से उतारा जाता है। जबकि अन्य जिलों में गुगा नौमी को ही लोग अपनी कलाई से राखी उतार देते है। मंडी में आज लोग स्नान करके बडों के पैर छूकर आशीर्वाद लेते है। अखरोट और हरी द्रभ शगुन के रूप में दी जाती है। लोग देवालयों में जाकर पूजा पाठ करते है। सारा वातावरण भक्ति विभोर होता है।
बिलासपुर नाई कौम के लोग सजी वाली रात को घर-घर जाकर लोगों को सैर बंधवाते है। जिसमें एक टोरी में सैर सजाई होती है। मक्की, खट्टा नीबू व अन्य फल सजाए होते है। लोग घरों में लाई गई सैर माता का आदर सतकार करते है। सोलन जिला में आज भी सैर बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। हमीरपुर, बिलासपुर और मंडी सीमा पर बसा लदरौर संतोषी मंदिर में आज विशाल मेंले का आयोजन किया जाता है। यह मेला पिछली कई सदियों से मनाया जाता है। जहां पिछली रात से ही ढोल नगाडों की आवाज से सारा वातावरण भक्ति मय हो जाता है।
वास्तव में हिमाचल में मनाया जाने वाला सैर त्यौहार एक ऐसा पर्व है जिस दिन बुरा यानी काला महीना समाप्त हो जाता है। विवाहित बेटियां अपने माता-पिता के घर पर एक महीना काटने के बाद ससुराल चली जाती है। मक्की व धान की फसल कटने को तैयार हो जाती है। इसलिए इस त्यौहार को मेले के रूप में मनाया जाता है। मौसम बदलने के कारण शरद ऋतु का आगमन होता है। लोगों को बीमारियों से छुटकारा मिल जाता है। आने वाले साल परिवार की सुख शांति को लेकर सैर का त्यौहार मनाया जाता है, ताकि आपसी भाईचारा बना रहे।