मैं, चंद्रमणी वशिष्ठ द्वारा लिखित लघु कथाओं की एक किताब, ‘‘देवता देख रहा है’’, पढ़ रहा था। हालांकि इसमें अन्य भी कुछ कहानियां हैं परन्तु यह कहानी जहां पहाड़ी लोगों की सच्चाई एवं देवता के प्रति श्रद्धा दर्शाती नजर आती है वहीं प्रसिद्ध कथाकार चंद्रधर गुलेरी की ‘‘उसने कहा था’’ कहानी की जुड़वां बहन महसूस होती है।
वशिष्ठ द्वारा कहानी को इस प्रकार से गूंथा गया है कि जैसे पाठक वहीं बैठा इस वार्तालाप को सुन रहा हो और अंत में सुंदरू द्वारा शरमा कर कहना, ‘‘देवता देख रहा है,’’ और वहां से भाग जाना, बिल्कुल ऐसा ही है जैसे गुलेरी की कहानी में नायक नायिका को कहता है, तेरी कुड़माई हो गई है और नायिका शरमा कर कहती है, ‘‘ धत’’ और भाग जाती है। यहां इन दोनों कहानियों की समानताएं स्पष्ट नजर आती हैं।
जिन पाठकों ने चंद्रधर गुलेरी की विश्व प्रसिद्ध ‘‘उसने कहा था,’’ कहानी को पढ़ा होगा उन्हें जरूर वशिष्ठ द्वारा लिखित कहानी, ‘‘देवता देख रहा है’’ में भी, वैसे ही निश्छलता, एवं सादगी का आभास होगा। यहां मैं वशिष्ठ की कहानी को संक्षेप मे प्रस्तुत कर रहा हूं ताकि सुधी पाठक इन दोनों कहानियों की समरूपता के दर्शन कर सकें।
कहानी का नायक एक 24-25 वर्ष का गरीब नौकर है जो एक गेस्ट हाउस में ग्राहकों के खाने पीने के साथ साथ उनके सभी प्रकार के कार्य करता है। इसी दौरान एक परिवार भी वहां ठहरने आता है जिनके साथ 17-18 साल की लड़की यानि कहानी की नायिका भी होती है। नायक गरीब भले ही है परन्तु हृष्ट-पुष्ट एवं सुंदर चेहरा मोहरा लिए हुए है।
नायिका उसे देख कर उस पर फिदा हो जाती है और एक रात उसे सोते से उठा कर घूमने ले जाने के बहाने अपने दिल की बात कहती है। मैं तुम्हें चाहने लगी हूं और हमारे साथ शहर चलना होगा। नायक सिरे से ही इनकार कर देता है जिस पर नायिका उसे अपने बाहुपाश में ले कर भावनात्मक तरीके से तैयार करने की चेष्टा करने लगती है।
नायक सुंदरू उसकी बाहें गले से निकाल कर कहता है यह क्या कर रही हो? नायिका तुरंत कहती है, तुम शरमा क्यों रहे हो यहां हमें कौन देख रहा है, हमारे सिवा यहां और कौन है तो नायक, धार पर बने चांदनी में चमक रहे मंदिर की ओर उंगली करके कहता है, ‘‘देवता देख रहा है’’।
इन दोनों कहानियों में यानि गुलेरी एवं वशिष्ठ की कहानियों में एक बात जो कॉमन है वो है गुलेरी की नायिका का शरमा कर ‘‘धत’’ कहना और वशिष्ठ की कहानी में नायक द्वारा शरमाते हुए कहना ‘‘ देवता देख रहा है’’। दोनों पात्रों का शरमा कर वहां से भाग जाना, यह स्थिति भी दोनों कहानियों में समानता का अहसास करवाती है। इसी प्रकार कहानी के दोनों पात्र सदा के लिए बिछड़ जाते हैं। दोनों कहानियां ग्रामीण परिवेश से संबंधित हैं।
गुलेरी की कहानी में नायक अपने प्यार का इजहार करता है और वशिष्ठ की कहानी में नायिका। और हो सकता है दोनों पात्र भी उनसे प्यार करते हों परन्तु स्वभाव में शर्मीलेपन के कारण स्वीकार न कर पाए हों। दोनों कथाकारों के लेखनविधि में भी काफी समानता दिखाई देती है। दोनों कथाकारों ने कहानी को स्पष्ट करके नहीं लिखा है बल्कि पाठकों को सोचने-समझने पर मजबूर किया है।
यहां यह कहना तर्कसंगत होगा कि भले ही चंद्रमणि वशिष्ठ द्वारा अपनी कहानियों को राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने का प्रयास नहीं किया गया हो मगर जो पाठक इनकी कहानियों को पढ़ चुके होंगे वे अवश्य ही इनके लेखनस्तर की प्रशंसा किए बिना नहीं रह सके होंगे। लेकिन मैं तो उनकी रचनाओं का पाठक रह चुका हूं और यह कहते हुए कोई झिझक नहीं है कि चंद्र-मणि हों या चंद्र-धर हों दोनों चंद्रमा थे जो विश्वपटल पर चांद की तरह चमकते रहे और अपने पाठकों के अंतर्मन में किरणों के रूप में चांदनी बिखेरते हुए अस्त हो गए।
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