एमबीएम न्यूज़ /शिमला
देवभूमि को एयर कनेक्टिविटी से जोड़ने के मकसद से हैली टैक्सी सेवा शुरू करने पर बल दिया जा रहा है। केंद्र सरकार उड़ान योजना- 2 के तहत आर्थिक मदद भी मुहैया करवाई जा रही है, लेकिन बड़ा यह सवाल उठता है कि क्या आज प्रदेश को हैली टैक्सी सेवाओं की तुलना में हैली एंबुलेंस की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि आज भी प्रदेश में ऐसे दुर्गम इलाके हैं, जहां सड़क हादसे होने की सूरत में मरीजों को स्वास्थ्य संस्थानों तक पहुंचाना बेहद मुश्किल हो जाता है।
बताया जा रहा है कि एक निजी कंपनी ने पेशकश भी की है, लेकिन सरकार इसे कब मूर्त प्रदान करेगी, यह कहना मुश्किल है। प्रदेश में हैली टैक्सी सेवा शुरू करना भी एक सराहनीय कदम है, लेकिन इससे पहले दुर्गम इलाकों की उन सड़कों को भी सुरक्षित करना लाजमी है, जिन पर आम लोगों ने रोजाना सफर करना है। किन्नौर, शिमला, सिरमौर, कुल्लू, लाहौल स्पीति व मंडी इत्यादि जिलों में कई ऐसे दुर्गम इलाके हैं, जहां आपातकालीन स्थिति में मरीजों को उच्च स्वास्थ्य संस्थानों तक पहुंचाने के लिए कई घंटों का सफर तय करना पड़ता है।
ऐसे दर्जनों मामले हैं, जिसमें सड़क हादसों के घायलों ने इस कारण दम तोड़ दिया, क्योंकि समय पर स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिल पाई। करीब एक साल पहले उत्तराखंड की सीमा पर टौंस नदी के किनारे गिरी एक निजी बस में करीब 40 लोगों की मौत हो गई थी। उस समय उत्तराखंड सरकार ने घायलों को एयरलिफ्ट करने के लिए अपने दो हेलीकॉप्टर लगाए थे। यह अलग बात है कि नदी किनारे लैंडिंग जोखिमपूर्ण थी, लिहाजा घायलों को एयरलिफ्ट नहीं किया जा सका था।
कुल मिलाकर प्रदेश सरकार को ऐसी व्यवस्था भी लाजमी तौर पर करनी होगी जिससे आपातकालीन स्थिति में घायलों को एयरलिफ्ट किया जा सके। बेहतर होगा कि मोदी सरकार पर्वतीय राज्यों को हैली एम्बुलेंस शुरू करने का भी अनुदान प्रदान करे। यह मामला इस कारण चर्चा में क्योंकि जयराम सरकार सूबे एयर कनेक्टिविटी पर जोर शोर से कार्य कर रही है।
सनद रहे कि सड़को को सुरक्षित करने के मकसद से क्रैश बैरियर की योजना पर भी कोई चर्चा नहीं सुनाई दे रही है।