वी कुमार/मंडी
ग्राम पंचायत औट के एक दर्जन गांव बीते 18 वर्षों से पानी की समस्या से जूझ रहे हैं लेकिन आज दिन तक ग्रामीणों की इस समस्या के समाधान की जहमत न तो विभाग उठा सका और न ही सरकारें।
आलम यह है कि स्कूलों के शौचालय बंद कर दिए गए हैं और बच्चों को गंदा पानी पीने पर मजबूर होना पड़ रहा है। ग्रामीण विकास को अपनी प्राथमिकता बताने वाली सरकारों और हर घर के नल में पानी देने का दम भरने वाले आईपीएच विभाग को ग्राम पंचायत औट के एक दर्जन गांवों का भ्रमण जरूर करना चाहिए। यहां दावों की हकीकत पता चल जाएगी।
द्रंग विधानसभा क्षेत्र के तहत आने वाली ग्राम पंचायत औट के खमराधा, सतलगी, रूहडू, बछीरा, बजा, डोभा, सहड़ीधारम, बागी, बहरीधार, घमौती, खीणी, चटैउगी, गरसाण, जला और कासना गांवों की लगभग 4 हजार की आबादी बीते 18 वर्षों से पानी की विकराल समस्या से जूझ रही है। हालांकि इन गांवों के लिए विभाग ने 2004 में एक योजना भी बनाई थी लेकिन सिर्फ कहने के लिए लाभ उसका आज दिन तक नहीं मिला।
ग्रामीण चतर सिंह ने बताया कि सरकार से लेकर विभाग तक को कई बार इसकी शिकायत दी, लेकिन समाधान आज दिन तक नहीं हो सका। पहले ग्रामीण प्राकृतिक जल स्त्रोतों का सहारा लेकर जीवन यापन कर लेते थे। लेकिन वर्ष 2000 में गांव के नीचे नेशनल हाइवे 21 पर औट के पास एक टनल बनी। इस टनल के बनने से पानी का रिसाव हुआ और अधिकतर जल स्त्रोत सूख गए।
अब इसी गांव के नीचे से होकर फोरलेन की टनल बनने जा रही है जिससे बाकी जल स्त्रोतों के सूखने का खतरा बन गया है। स्थानीय निवासी सुरेंद्र और निर्मला देवी ने बताया कि ग्रामीणों के पास जो इक्का-दुक्का जल स्त्रोत बचे हैं वो भी कोसों दूर हैं और वहां पर भी लाईनों में खड़े होकर पानी भरना पड़ता है। ग्रामीणों के पास दिन भर एक ही काम रह गया है और वो है पानी ढोकर लाने का।
इन गांवों में पानी की समस्या इतनी विकराल हो चुकी है कि स्कूल जाने वाले नौनिहालों को भी पीने का पानी नसीब नहीं हो रहा है। प्राइमरी स्कूल खमरादा की अध्यापिका रिचा पठानिया ने बताया कि जब कभी पानी आता है तो वह गंदा होता है और उसी पानी को बच्चों को पिलाने व खाना बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। वहीं पानी न होने के कारण शौचालयों के इस्तेमाल पर तो पाबंदी ही लगा दी गई है।
ग्रामीणों की इस समस्या से शासन भी भली भांति परिचित है और प्रशासन भी, लेकिन समाधान की जहमत नहीं उठाई जा रही है। ग्रामीण भी इस बात को लेकर चिंता में हैं कि उनके इलाके के साथ इस प्रकार का भेदभाव क्यों किया जा रहा है। हालांकि इस गांव के ठीक नीचे ब्यास नदी बहती और उस पर लारजी डैम भी बना है, फिर भी गांव के लोगों को पानी की बूंद-बूंद के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ रही हैं।