शिमला (शैलेंद्र कालरा): संडे को देवभूमि की हर आंख नम थी। उस माता-पिता, विधवा व बेटे-बेटियों की भावनाओं को समझने की कोशिश कीजिए, जो पंचतत्व में विलिन होने से पहले शहीदों का चेहरा भी नहीं देख पाए। लिहाजा शहीदों के परिवारों के जज्बे के आगे भी हरेक हिमाचली का सिर झुक गया।
अंतिम यात्रा शुरू होने से पहले परिवार पार्थिव शरीर के दर्शन करता है। इसके बाद श्मशानघाट में भी शव के आखिरी दर्शन करवाए जाते हैं, लेकिन हिमाचल के 7 जाबांज सिपाहियों की अंतिम विदाई में यह परंपरा भी नहीं निभाई जा सकी, क्योंकि सैनिकों की शहादत भी ऐसी थी कि उनके पार्थिव शरीर देखकर किसी की भी रूह कांप उठे। लिहाजा जिस तरीके से बाक्स में पार्थिव शरीर घर पहुंचे थे, वैसे ही उनका अंतिम संस्कार पूरे मिलिट्री व राजकीय सम्मान के साथ किया गया। सेना ने विशेष तौर पर परिवारों को पार्थिव शरीर न देखने के बारे में भी आग्रह किया।
घात लगाकर किया गया हमला इतना भंयकर था कि सैनिकों के शव पूरी तरीके से क्षत विक्षत हो गए। रविवार का दिन देवभूमि के इतिहास के पन्नों में भी दर्ज हो गया। बेशक होनी को यहीं मंजूर था, लेकिन देश की सेवा में अपने प्राण त्याग देने वाले इन शहीदों की शहादत पर मानों कुदरत भी नतमस्तक हो गया हो। तमाम शहीद सैनिकों के बच्चों की उम्र एक से 12 साल के बीच है।
संडे को सुबह से ही शहीदों को मुख्यागिनी दी जानी लगी। राज्य सरकार के मंत्री अलग-अलग हिस्सों में शहीदों को नमन करने पहुंचे। इसके अलावा सेना ने भी अपने वीर जवानों को श्रद्धासुमन अर्पित करने के लिए पूरी व्यवस्था की थी। शहीदों की अंतिम यात्रा में हजारों लोगों का सैलाब उमड़ा हुआ था।
मुख्यमंत्री ने की प्रत्येक शहीद के परिवार को 5 लाख रूपए देने की घोषणा
मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने मणिपुर में एक आंतकवादी हमले में शहीद हुए प्रदेश के 7 जाबांज सिपाहियों के प्रत्येक परिवार को पांच लाख रूपए वित्तिय सहायता प्रदान करने की घोषणा की है।
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार हमले में मारे गए सभी सात सेना पुरुषों के परिवार के सदस्यों को हर संभव मदद प्रदान करेगी। उन्होंने शहीदों को अपनी श्रद्धांजलि देते हुए परिवारों के प्रति संवेदना प्रकट की है।