शिमला (एमबीएम न्यूज़) : समूचे देश में नारी सशक्तीकरण की बात हो रही है। महिलाएं भी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलकर चलने का दंभ भर रही हैं, लेकिन हिमाचल की राजनीति में पुरुषों का ही दबदबा रहा है। कांग्रेस सरकार की निवर्तमान मंत्री विद्या स्टोक्स को छोड़ कर अन्य किसी महिला के हाथ में राजनीति की बागडोर नहीं आ सकी है। विद्या स्टोक्स कांग्रेस पार्टी में अध्यक्ष के पद पर काबिज रह चुकी हैं। प्रदेश के राजनीतिक दलों ने हर बार महिलाओं को टिकट देने से परहेज किया है। मुख्य दलों भाजपा व पार्टियों ने ज्यादातर पुरुष प्रत्याशियों पर ही दांव लगाकर चुनाव लड़ा। इतिहास के पन्नों को पलटे तो अब तक लगभग 5 फीसदी महिलाएं ही हिमाचल विधानसभा में पहुंच पाई हैं।
हैरत की बात यह है कि ऊना, बिलापुर और किन्नौर जिलों से किसी महिला को आगे बढ़ने का मौका नहीं मिल पाया है। इन 3 जिलों से आज तक कोई महिला विधायक नहीं बन पाई है। साल 2012 में भाजपा व कांग्रेस ने एक दर्जन महिलाओं को चुनाव में उतारा था, लेकिन 3 महिलाएं ही चुनाव जीत पाईं। इनमें ठियोग से कांग्रेस की उम्मीदवार विद्या स्टोक्स और डल्हौजी से आशा कुमारी तथा शाहपुर से भाजपा की सरवीण चौधरी ही जीत पाईं। वर्तमान में विद्या स्टोक्स बागवानी मंत्री हैं। विधायक आशा और शरवीण भी पूर्व सरकारों में मंत्री रह चुकी हैं।
यह स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है कि सियासी पार्टियों ने मातृशक्ति का उपयोग सिर्फ वोट बैंक के लिए ही किया है, क्योंकि प्रदेश के 68 विधानसभा सीटों में महिला मतदाताओं की संख्या पुरूष मतदाताओं के लगभग बराबर है। मतदाता सूची में 49.5 लाख मतदाता पंजीकृत हैं। सूची के अनुसार 24.29 लाख पुरूष और 24.7 लाख महिलाएं मतदाता हैं। खास यह है कि पिछले चार विधानसभा चुनाव में महिला मतदाताओं की प्रतिशतता पुरूषों से अधिक रही है।