शिमला (शैलेंद्र कालरा) : अफसरशाही कैसे वीआईपी कल्चर से बाहर आने को तैयार नहीं है इसकी परतें लगातार उधडती जा रही है। एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने पार्ट-1 में इस बात का खुलासा किया था कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमेन ने वीआईपी नंबर लेने के लिए एक लाख रूपये खर्च कर दिए थे। इसके बाद पार्ट – 2 में आरटीआई से मिली जानकारी के आधार पर यह खुलासा किया गया कि कांगडा के डीसी सीपी वर्मा ने भी अपने सरकारी वाहन पर एक नंबर लगाने के एवज में ट्रांसपोर्ट महकमे को एक लाख रूपये की कीमत चुकाई है।
अब ताजा मामला शिमला के युवा उपायुक्त रोहन ठाकुर से जुडा हुआ है। इसके मुताबिक डिप्टी कमिश्रर के सरकारी वाहन का नंबर HP 52C – 0001 लेने के लिए एक लाख रूपये खर्च किए गए है। इस वाहन का पंजीकरण शिमला (ग्रामीण) एसडीएम कम आरएलए में 1 जून 2017 को हुआ। सवाल उठता है कि क्या सरकार नींद से जागकर इस बारे में अफसरशाही को उचित दिशा निर्देश जारी करेगी या नहीं। कमाल की बात यह भी है कि एक गरीब व्यक्ति को इंदिरा आवास योजना हासिल करने के लिए दर-बदर की ठोकरें खानी पडती है, यहां तो केवल वीआईपी नंबर लेने के लिए एक हस्ताक्षर पर ही एक लाख खर्च हो जाते है।
एमबीएम न्यूज नेटवर्क यह पहले भी बता चुका है कि 01 से 10 तक के नंबर पेड है इसे कोई भी व्यक्ति तय राशि का भुगतान करने के बाद हासिल कर सकता है। अब जब अफसरशाही सरकारी खजाने का इस्तेमाल करते हुए इन नंबरों को हासिल करेगें तो आम व्यक्ति को वंचित होना ही पडेगा। पिछली बार की तरह आज भी एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने इस मामले पर डीसी रोहन ठाकुर से बात करने का प्रयास किया लेकिन फोन रिसीव नहीं किया गया। साथ ही व्हास्टअप मैसेज का भी जवाब अभी तक नहीं आया।
पत्रकारिता के सिंद्धातों के तहत अगर युवा आईएएस अधिकारी रोहन ठाकुर कोई प्रतिक्रिया भेजते है तो उसे भी प्रकाशित करना जिम्मेदारी होगा।
रसूख है तो …
ऐसा भी बताया जाता है कि रसूख हों तो वीआईपी नंबर के कुछ और जुगाड भी है। लेकिन इसमें कीमत के साथ कोई समझौता नहीं होता। मान लीजिए कि बी सीरिज में आपकी पंसद का नंबर उपलब्ध नहीं है तो नई सीरीज भी अधिसूचित करवाई जा सकती है।