पांवटा साहिब : एकदम सुनने में शायद अजीब सा लगे, लेकिन पांवटा साहिब के किसान बिना सेब का फल पैदा किए भी पौधों से माला माल हो सकते हैं। दरअसल ऊपरी क्षेत्रों के बागवान अपने नए पौधे पांवटा साहिब घाटी के किसानों को एक या दो वर्ष के लिए गोद (रखरखाव) के लिए दे सकते हैं। ठीक वैसे ही जैसे कामकाजी परिवार अपने बच्चों को कुछ समय आंगनवाड़ी, क्रैच या बोर्डिंग स्कूल में भेज देते हैं। उनकी परवरिश के लिए संस्थान को एक निश्चित रकम चुकाते हैं। इस तरह से एक को कार्य करने में आसानी होती है। दूसरे को आय का नया साधन मिल जाता है।
पूरे विश्व में उन्नत सेब उत्पादक नर्सरी से ही दो या तीन या इससे भी अधिक वर्ष के बड़े पौधे लेते हैं। जिसको अंग्रेजी भाषा में फेदर्ड प्लांट कहा जाता है। यानी जिसमें तना, शाखाएं और फल के बीमे पूर्ण विकसित हो चुके होते हैं। ताकि उनको बगीचों में लगाने के साथ उसी वर्ष में फल दे सके और बागवान की आमदनी शुरू हो जाए।
भारत में अभी कुछ ही नर्सरी हैं जो फैदर प्लांट पैदा कर रही हैं। लेकिन उनकी मात्रा बहुत सीमित है। इसकी मांग या जरूरत हजारों गुना अधिक है। वैसे भी एक नर्सरी मालिक का ध्यान व लक्ष्य उच्च गुणवत्ता की पौध को तैयार करना होता है। इतने अधिक बड़े पौधे तैयार करने लायक पर्याप्त जगह उनके लिए जुटाना भी नामुमकिन हो जाता है। ऐसे में सबसे बेहतर विकल्प है कि किसान नए पौधे लेकर उनकी फेदरिंग करें, जो किसान बागवान के लिए भी मुश्किल है। ठंडे बर्फीले क्षेत्रों में पौधों के विकसित होने की रफ्तार काफी कम रहती है। तब ऐसे में पावंटा साहिब बेहतरीन विकल्प साबित हो सकता है।
पर्वतीय क्षेत्रों की तुलना में यहां पौधे सुप्त अवस्था (डोरमेंसी) में तीन महीने कम रहते हैं। जहां ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पौधों में पत्ते अप्रैल से अक्टूबर तक रहते हैं। वहीं पास में मार्च से दिसंबर तक यानी पौधों को विकास के लिए तीन महीने या 90 दिन का अतिरिक्त समय मिलता है। पांवटा साहिब का मौसम बहुत अधिक गर्म है। जिसमें फल चाहे न लग सके पर सेब का पौधा बहुत जल्दी से बढ़ता और पनपता है। पांवटा साहिब कि मिट्टी बहुत अधिक उपजाऊ व समतल है। इसकी वजह से खादों के बहने (लीचिंग) का डर बहुत कम रहता है और खादों पर बहुत कम खर्च आता है। पांवटा साहिब में सिंचाई आसान है। फ्लड इरिगेशन फार्मूले से पौधे बहुत जल्दी से बढ़ते हैं।
एक अनुमान के मुताबिक पर्वतीय क्षेत्रों से तीन गुना ज्यादा बढ़ते हैं। घाटी पर्वतीय क्षेत्रों से सटी है। यहां आवागमन बहुत आसान है और पौधों को लाना और छोड़ना भी ज्यादा मुश्किल नहीं है। जब पौधों का आकार व फल की बीमे पूर्ण विकसित हो जाए तो बागवान अपने पौधों को ले जाकर बगीचों में लगाकर उसी वर्ष फसल लेकर अपनी आय को बढ़ा सकते हैं। यह पर्वतीय बागवनों और पावंटा साहिब के किसानों के लिए फायदेमंद है। स्थानीय किसान धान, गेहूं व गन्ने से कहीं अधिक आय इसके माध्यम से कमा सकता है। सेब बागवान भी दो-तीन साल बचा कर मोटी कमाई करते हैं।
पावंटा साहिब की ब्लूप्रिंट विज़न समिति खुद यह प्रयोग दो वर्ष से कर रही है। नतीजे बहुत उत्साहजनक हैं। दो अन्य बागवान भी इस प्रयोग को देखकर 2019 से यहां सेब के पौधे लगा चुके हैं। अनिन्द्र सिंह नौटी का कहना है कि इसके लिए सभी जरूरी सहायता और मार्गदर्शन ब्लूप्रिंट विज़न कमेटी के तकनीकी विशेषज्ञ या प्रगतिशील बागवान उपलब्ध करवा सकते है।