शिमला (शैलेंद्र कालरा) : 29 साल की उम्र में HAS बनी डा0 पूनम बंसल की सफलता कई मायनों में प्रेरणादायक है। यह साबित हुआ है, हार के बाद जीत होती है। पारिवारिक दायित्व के साथ-साथ भी सफलता की बुलंदी को छुआ जा सकता है। 2010 में डा0 बंसल ने आईजीएमसी से बीडीएस की पढाई पूरी की। हमेशा से दंत चिकित्सक ही बनना चाहती थी। नौकरी के संसाधन सीमित थे। प्रयास करती रही कि डेंटल सेवा में चयन हो जाएं। लेकिन दो बार असफलता मिली। ठान लिया, HAS की परीक्षा में सफलता पाएंगी। 2010 में शादी हो गई। बेटा हुआ, दो साल पहले बेटे समन्यु बंसल ने स्कूल जाना शुरू कर दिया। फिर क्या था जो समय बेटा स्कूल में बिताता था उस समय में तैयारी में लगी रहती। घर का कामकाज निपटाने के बाद नन्हे बेटे की परवरिश पर भी पूरा ध्यान केंद्रित करना होता था।
BSNL में SDO के पद पर तैनात पति सुनील बंसल ने भी पत्नी का जुनून भांप लिया था। लिहाजा जानते थे कि समय आने पर पूनम HAS अधिकारी बन जाएंगी। आखिर में यह पल शनिवार देर शाम उस वक्त आएं जब हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग ने HAS की परीक्षा का नतीजा घोषित किया। 26 में से 4 HAS बनें। इसमें पूनम को तीसरा स्थान मिला। मूलत: मंडी के टिहरा की रहने वाली है। 2010 में बिलासपुर के लखनपुर गांव में विवाह हुआ। सबसे बडी बात यह है कि पांच साल के बेटे को ठीक से अभी यह समझ भी नहीं आएगा कि मम्मी ने बडी सफलता पा ली है।
क्यों है इस सफलता के अलग मायने
कोई कोचिंग नहीं ली। पूरी लगन से व दूरदर्शिता से तैयारी की। गृहिणी होने के साथ-साथ नन्हे बेटे की जिम्मेदारी को भी निभाना था। घरेलू कामकाज को निपटाने की भी चुनौती थी। दंत चिकित्सक नहीं बन पाई लेकिन HAS बन गई। छोटी उम्र में ही शादी की जिम्मेदारी भी उठाई। अमूमन उस उम्र में युवा अपने कैरियर पर ही ध्यान केंद्रित करते है। डेंटल सेवा में असफलता न मिलती तो आज HAS न बनती।
क्या बोली विशेष बातचीत में
एमबीएम न्यूज नेटवर्क से डा0 पूनम बंसल ने अपनी सफलता को लेकर लंबी बातचीत की। साफ शब्दों में कहा कि केवल और केवल कडी मेहनत ही काम आती है। भाग्य नहीं होता है। भाग्य को लेकर अपने तरीके से बहाने बना लिए जाते है। उन्होंने कहा कि दो सालों से हर रोज 8 से 10 घंटे का वक्त निकालती थी।