देहरादून, 12 अप्रैल : उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव (Uttarakhand Lok Sabha elections) के लिए मात्र 7 दिन शेष हैं। प्रमुख दलों ने प्रचार में पूरी ताकत झोंक रखी है। पांच लोकसभा सीटों वाले उत्तराखंड में सबसे नजदीकी मुकाबला गड़वाल (पौड़ी) सीट पर नजर आ रहा है। हालांकि, टिहरी व हरिद्वार (Haridwar) में भी दिग्गजों की साख दांव पर लगी है। हरिद्वार में दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के राजनीतिक भविष्य (political future) का फैसला होना है। वहीं टिहरी में निर्दलीय प्रत्याशी ने प्रमुख दलों की नींदे उड़ा दी हैं। गढ़वाल सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार गणेश गोंदियाल (Ganesh Gondiyal) ने चुनाव को बेहद रोचक व कड़ा बना दिया है।
भाजपा प्रत्याशी अनिल बलूनी दिल्ली में पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रहे, उनके सामने चुनाव जीतना पहाड़ सी चुनौती बनता दिख रहा है। गोंदियाल ने अग्निवीर व अंकिता भंडारी मर्डर को मुद्दा बनाकर भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है। बलूनी के चुनाव प्रचार में भाजपा की मशीनरी को जबरदस्त चुनौती मिल रही है। गोंदियाल जिस क्षेत्र से आते हैं, वह भोगौलिक रूप से पौड़ी का सबसे विकट क्षेत्र है। उन्हें पौड़ी के चपे-चपे का ज्ञान है। जिसके चलते वह छोटी-छोटी नुक्कड़ सभाओं के जरिए मतदाताओं के मर्म पर स्थानीय मुद्दों का प्रहार कर रहे हैं। अनिल बलूनी कॉर्पोरेट लीडर की तरह चुनाव प्रचार में जुटे है। उन्हें केंद्रीय नेताओं की रैलियों से कितना लाभ मिलेगा यह देखना है। कुल मिलाकर गढ़वाल में मुकाबला बड़ा दिलचस्प है।
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उधर, हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र में दो पूर्व मुख्यमंत्रियों की साख दांव पर लगी है। पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत बीजेपी के टिकट पर चुनावी वैतरणी पार करना चाह रहे हैं। वहीं कांग्रेस टिकट पर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के पुत्र वीरेंद्र रावत के चुनाव लड़ने से उनका राजनीतिक भविष्य दांव पर है। त्रिवेंद्र रावत को भाजपा का एक गुट अंदर खाते चुनाव जीतता नहीं देखना चाहता। इनमें जहां से टिकट की आस लगाए बैठे पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक हो या मुख्यमंत्री पुष्कर धामी। क्योंकि त्रिवेंद्र का पार्टी के अंदर इन दोनों से छत्तीस का आंकड़ा है।
वहीं, खानपुर के विधायक उमेश शर्मा ने निर्दलीय चुनाव में उतरकर कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा रखी हैं। उनका हरीश रावत से छत्तीस का आंकड़ा जग जाहिर है। उमेश पत्रकार रहे हैं। उन्होंने हरीश रावत की सरकार को स्टिंग ऑपरेशन के माध्यम से गिर वाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वहीं, बसपा का मुस्लिम उम्मीदवार कांग्रेस को मिलने वाले मुस्लिम वोटों में सेंध लगाने की पूरी कोशिश कर रहा है
बताया जा रहा है कि भाजपा ने मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण के लिए उम्मीदवार को मैदान में उतारा है। कुल मिलाकर जो भी चुनावी नतीजे आएंगे वह दोनों पूर्व मुख्यंत्रियों के भविष्य की दशा व दिशा तय करेंगे। अपनों की चुनौती पर पार पाना दलों के लिए मुश्किलें पैदा कर रहा है। वहीं टिहरी में राजशाही के खिलाफ लोग धीरे-धीरे लामबद्ध हो रहे हैं। भाजपा उम्मीदवार राज्य लक्ष्मी शाह के एक बयान के बाद उनकी मुश्किलें बढ़ गई हैं।
उन्होंने बीते दिन एक बयान में कहा था कि वह अपनी बेटी को राजनीति में लाना चाहती हैं। ये परिवार वर्षों से टिहरी की सत्ता पर काबिज है। 26 वर्षीय निर्दलीय प्रत्याशी व उत्तराखंड बेरोजगार संघ के अध्यक्ष बॉबी पंवार ने चुनाव को रोचक बना दिया है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि यदि कोई बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम चुनाव से पहले नहीं घटा तो बॉबी पंवार इस बार टिहरी सीट पर अप्रत्याशित रूप से राज परिवार के लिए बड़ी चुनौती है।
@A1