नाहन : ट्रांसगिरि क्षेत्र की कमरऊ पंचायत के बलदवा गांव में गरीब पिता रघुवीर ने बेटों को पढ़ाने के लिए हाड़ तोड़ मेहनत की। क्षेत्र की चूना खदान में दिहाड़ी व खेती-बाड़ी से गुजर-बसर किया। परिवार में आमदनी इतनी नहीं थी कि बेटे की पढ़ाई का खर्चा कर सकें। लिहाजा, रिश्तेदारों से कर्जा लिया। अब पिता की मेहनत ऐसा रंग लाई है कि बेटे की सफलता पूरे प्रदेश में चर्चा में आ गई है।
हालांकि जेल वार्डर के तौर पर 22 साल के बेटे विजय का चयन पहले ही हो गया था, लेकिन विजय ने पुलिस की लिखित भर्ती परीक्षा में 64 अंक हासिल कर सिरमौर में तो टॉप किया ही है। साथ ही संभावना इस बात की भी जताई जा रही है कि विजय प्रदेश में टॉप-3 में भी शामिल हो सकता है। चूंकि पुलिस विभाग ने जिलावार नतीजे घोषित किए हैं, यही कारण है कि ओवरऑल मैरिट नहीं बनी है।
एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने अपनी पड़ताल में पाया है कि अगर केवल लिखित परीक्षा की ही बात की जाए तो विजय निश्चित तौर पर परीक्षा में सर्वाधिक अंक लेने वाला अभ्यार्थी है। बराबरी पर भी अन्य अभ्यार्थियों के होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। दीगर है कि पुलिस विभाग ने लिखित परीक्षा व कद के अंकों को जोड़कर नतीजा जारी किया है। कद के मापदंड पर सर्वाधिक पांच अंक रखे गए थे, इसमें से विजय को केवल एक ही अंक मिला।
बहरहाल, इस बात का फर्क नहीं पड़ता है कि विजय प्रदेश के तीन सर्वश्रेष्ठ अभ्यार्थियों में रहा या नहीं रहा, लेकिन यह बात जरूर प्रेरणादायक है कि घर की विषम आर्थिक परिस्थितियों के बावजूद विजय ने सफलता के गगन को चूमा है।
…तो विजय नहीं करेगा पुलिस ज्वाइन
हालांकि विजय ने पुलिस में ज्वाइनिंग को लेकर अंतिम फैसला नहीं लिया है, लेकिन एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत में एक अहम बात जरूर कही है। विजय ने कहा कि वो पहले से ही जेल वार्डर की ट्रेनिंग कर रहा है, जो 31 अक्तूबर को पूरी हो जाएगी। ट्रेनिंग के दौरान पढ़ाई का समय नहीं मिलता। अगर वो अब पुलिस विभाग को ज्वाइन करता है तो दोबारा ट्रेनिंग करनी पडे़गी। वो चाहता है कि जेल विभाग में ही नौकरी शुरू करने के बाद अगली प्रतियोगितात्मक परीक्षाओं की तैयारी शुरू करे। उन्होंने कहा कि पुलिस विभाग में फिर से ट्रेनिंग करनी पड़ेगी, लिहाजा पढ़ाई का वक्त नहीं मिलेगा।
परिवार की त्वरित प्रतिक्रिया….
एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने विजय के पिता रघुवीर व भाई अजय से बातचीत की। पिता ने तो साफ तौर पर कहा कि वो कभी स्कूल गए ही नहीं। लेकिन बच्चों की पढ़ाई के लिए कोई कमी नहीं रखना चाहते थे, क्योंकि वो जानते हैं कि अनपढ़ता किस तरह से जीवन में मुश्किलें पैदा करती है।
उधर पांवटा साहिब के एक उद्योग में काम करने वाले विजय के भाई अजय का कहना था कि दसवीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद विजय ने जमा दो की पढ़ाई सरकारी स्कूल में पूरी की थी। इसके बाद परिवार ने उसे विकट आर्थिक परिस्थितियों के बावजूद देहरादून आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिए भेजा। इसके लिए परिवार को रिश्तेदारों से कर्जे भी लेने पड़े।
बलदवा गांव के रहने वाले जगत सिंह का कहना था कि समूचे गांव के लिए विजय की सफलता गौरव लेकर आई है। परिवार का यह भी कहना था कि विजय प्रशासनिक अधिकारी बनना चाहता है, लेकिन पहले नौकरी को प्राथमिकता देना मजबूरी है, क्योंकि कर्ज भी चुकाना है।