एमबीएम न्यूज/पांवटा साहिब
हालांकि शहर का 31 वर्षीय नौजवान हेमंत शर्मा अब परिचय का मोहताज नहीं है। हर कोई उसे लावारिस लाशों के मसीहा के रूप में पहचानता है। 12 दिसंबर को धौलाकुआं की दीपिका शर्मा से हेमंत परिणय सूत्र में बंधा। हिन्दू रीति-रिवाजों के मुताबिक हेमंत किसी भी अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो सकता था। यहां तक की जिस घर में मौत हुई हो, वहां शोक भी नहीं प्रकट कर सकता। लेकिन लावारिस लाशों के अंतिम संस्कार की अपनी सोच के आगे रिवाज भी बौने साबित कर दिखाए। इस रिवाज को भी खुद ब्राह्मण होने के बावजूद हेमंत ने दरकिनार कर दिया है, क्योंकि वो भली-भांति इस बात से मानसिक रूप से तैयार हो चुके हैं कि जीवन का मुख्य लक्ष्य लावारिस शवों को चिता उपलब्ध करवाना है।
20 दिसंबर को अस्पताल के समीप ही एक लावारिस शव मिला था। नौजवान हेमंत ने ही शव को डैड हाऊस तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई। दो दिन तक शिनाख्त न होने के बाद आज शव को खुद मुखाग्नि देकर अंतिम संस्कार किया। परिवार ने भी यह कहकर कोई आपत्ति नहीं की, कि शादी को 10 दिन भी नहीं हुए हैं। एक अंतिम संस्कार पर हेमंत करीब चार हजार रुपए खर्च करते हैं। एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत में हेमंत ने कहा कि यह 16वां अंतिम संस्कार था। उन्होंने कहा कि अब तक अपनी पॉकेट से ही खर्च करते हैं।
क्या लिया पत्नी से वचन…
महज दो सप्ताह पहले ही परिणय सूत्र में बंधे हेमंत शर्मा ने शादी से पहले ही अपनी अर्द्धांगिनी बनी दीपिका शर्मा से वचन लिया था कि वो जब भी किसी लावारिस शव का अंतिम संस्कार करने जाएंगे तो किसी भी तरह की आपत्ति नहीं करेगी। शादी से पहले ही दीपिका ने भी ख़ुशी-ख़ुशी इस बात पर सहमति जता दी थी।
कैसे होती है अस्थियां प्रवाहित….
हेमंत के मुताबिक गरुड़ पुराण के सातवें अध्याय में लिखा है कि लावारिस शव की अस्थियों को उसी जगह की नदी में प्रवाहित किया जाता है, जहां शव मिला हो। अगर स्थानीय शासक या अध्यक्ष अस्थियां प्रवाहित करने के लिए उपलब्ध न हो तो ब्राह्मण इस कार्य को कर सकता है। चूंकि खुद भी ब्राह्मण है, लिहाजा शहर के साथ बहने वाली यमुना में ही अस्थियों को प्रवाहित करते हैं।
कुल मिलाकर हेमंत पहले लावारिस लाशों के मसीहा बनकर मिसाल पेश कर रहे थे, लेकिन इस मर्तबा हिन्दू रीति-रिवाजों को दरकिनार कर मिसाल पे मिसाल पेश कर दी।
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