एमबीएम न्यूज/शिमला
देवभूमि में एक साथ तीन दोषियों को सजा-ए-मौत की खबर सुर्खियों में है। हर किसी के जहन में यह सवाल उठ रहे हैं, कैसे फांसी दी जाएगी। हर कोई यही सोच रहा है कि जैसे फिल्मों में दिखाया जाता है, उसी तरह फांसी दी जाती होगी। इन्हीं सवालों के जवाब तलाशने के लिए एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने प्रयास किया है। इससे जुड़ी खास बातें…
1. फांसी देते वक्त जेल अधीक्षक, कार्यकारी दंडाधिकारी व जल्लाद मौजूद रहते हैं। इनमें से किसी एक की भी गैर मौजूदगी में फांसी नहीं दी जा सकती।
2. जेल मैन्युअल के तहत फांसी सूर्याेदय से पहले दी जाती है। इसके पीछे मकसद दूसरे काम प्रभावित न होना होता है।
3. फांसी के लिए एक खास किस्म की रस्सी का इस्तेमाल किया जाता है। इसे भारत में मनिला कहा जाता है। यह रस्सी देश में केवल एक ही जगह बनाई जाती है।
4. फांसी से पहले मुजरिम को उसके गुनाह के बारे में विस्तार से बताया जाता है। इस दौरान जल्लाद मुजरिम के दोनों हाथ पीछे की तरफ से बांध देता है। दोनों पांव भी बांध दिए जाते हैं। इसी वक्त मुजरिम के सिर पर काला कपड़ा डाल दिया जाता है।
5. जल्लाद फांसी देने से पहले प्रार्थना पढ़ता है। इसके बाद तयशुदा वक्त पर जैसे ही जल्लाद हाथों से लीवर को खींचता है, उसी दौरान मुजरिम फांसी पर लटक जाता है।
6. मुजरिम को कब तक फांसी पर लटकाया जाना है, इसका कोई तय वक्त नहीं होता। जांच के लिए मौजूद डॉक्टर फंदे में ही मुजरिम की सांसें देखता है। उसके मृत घोषित करने के बाद ही लाश को नीचे उतारा जाता है।
7. देश में एकमात्र पुश्तैनी जल्लाद पवन है। रंगा बिल्ला को पवन के दादा ने ही फांसी पर लटकाया था। इस परिवार का ताल्लुक उत्तर प्रदेश के मेरठ से है।
8. देश में अब तक आठ जेलों में ही फांसी दी गई है। इसमें दिल्ली की तिहाड़ जेल, नागपुर, आगरा, अलीपोर, यरवदा, इलाहाबाद व जयपुर के अलावा पटियाला जेल शामिल है।
9. चार साल के मासूम युग के हत्यारों को फांसी देने के लिए हिमाचल में कोई फांसीघर नहीं है। अगर इसका इंतजाम कर भी लिया जाता है तो जल्लाद को ढूंढना भी चुनौती होगा। देश में तीन से चार जल्लाद ही उपलब्ध हो सकते हैं।
10. जल्लाद न मिलने पर आतंकियों को जेल के कांस्टेबल रैंक के कर्मियों ने ही फांसी पर लटकाया था।
11. 2004 में रेप व मर्डर के अपराधी धनन्जय दास को फांसी देने के लिए असम सरकार को अन्य राज्यों से मदद मांगनी पड़ी थी। उस दौरान देश में केवल एकमात्र बाबू अहमद जल्लाद के ही उपलब्ध होने की बात सामने आई थी, जो बंगाल का रहने वाला था। इसके बाद नामी जल्लाद कालू कुमार के खानदान का पवन भी जल्लाद बनने को तैयार हो गया था।
नहीं है फांसी घर…तो कहां चढ़ाएंगे “युग” के हत्यारों को सूली….https://goo.gl/zn5RnM