शैलेंद्र कालरा / पांवटा साहिब
शहर में 31 साल के युवक हेमंत शर्मा को लावारिस लाशों के मसीहा के तौर पर पहचाना जाता है। हो भी क्यों न, एक ऐसा सामाजिक दायित्व निभा रहे हैं, जो हर किसी के लिए आसान नहीं है।
मौजूदा परिदृश्य की बात करें तो आज के दौर में श्मशानघाट में किसी व्यक्ति के अंतिम संस्कार में पहुंचने वाला हर शख्स गप्पों में व्यस्त होता है या फिर मोबाइल पर। मगर हेमंत अपने कंधों पर लावारिस लाशों को ढोने में परहेज नहीं करते हैं। साथ ही अंतिम संस्कार से लेकर अस्थि विसर्जन तक की जिम्मेदारी को निभाते हैं। हालांकि इस नेक कार्य को करते हुए हेमंत को डेढ़ साल के आसपास का समय बीत चुका है, लेकिन शुक्रवार को एक महीने पुरानी लाश को मुखाग्रि देने को लेकर जबरदस्त तरीके से चर्चा में हैं।
दरअसल मालवा कॉटन के समीप एक बंद कमरे में अज्ञात व्यक्ति की मौत हो गई। लगभग एक महीने तक किसी को भी अज्ञात शख्स की मौत की भनक नहीं लगी। जैसे ही 8-10 दिन पहले तापमान में बढोतरी हुई तो आसपास के इलाके में बदबू फैली। पुलिस ने सूचना मिलने के बाद दरवाजा तोड़ा तो कंकाल के तौर पर लाश मिली। शिनाख्त के मकसद से शवगृह में रख दिया गया। लेकिन पहचान नहीं हो पाई। लिहाजा पुलिस ने हेमंत शर्मा को अंतिम संस्कार के लिए संपर्क साधा।
समाजसेवी हेमंत ने पुलिस की बात को सहर्ष स्वीकार कर लिया। अपनी टीम के साथ अंतिम संस्कार की तमाम रिवायतों को निभाया।
उधर एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने समाजसेवी हेमंत शर्मा से पूछा कि आखिर इस तरह का नेक कार्य करने का इरादा कैसे हुआ तो जवाब दिया कि एक मर्तबा अंतिम यात्रा में श्मशानघाट गए थे। वहां मौजूद चौकीदार ने बताया कि किसी लावारिस लाश की अस्थियां नहीं उठाई गई हैं। उसी दिन से यह ठान लिया था कि हरेक लावारिस को चिता देंगे। उन्होंने कहा कि धर्म के अनुसार भी अंतिम संस्कार को हर वक्त तैयार रहते हैं।
शुक्रवार के अंतिम संस्कार के बारे में हेमंत ने बताया कि रिवायत के मुताबिक अस्थियों के विसर्जन के अलावा शव पिंडदान भी करेंगे।