कांगड़ा (एमबीएम न्यूज): देवभूमि प्राचीन मंदिरों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विशेष पहचान रखती है। यहां ज्वाली से महज 8 किलोमीटर दूर स्थित बाथू मंदिर की बात हो रही है। यकीन मानिए, 12 महीनों में से 8 महीने तक प्राचीन मंदिर जलमग्र रहता है। लेकिन वास्तुकला ऐसी है कि एक भी पत्थर नहीं हिला है।
पौंग बांध के महाराणा प्रताप सागर झील में इस मंदिर को बाथू मंदिर के नाम से जाना जाता है। स्थानीय लोग इसे बाथू की लड़ी कहते हैं। मंदिर 70 के दशक में बांध के पानी में डूब गया था।
खुद गौरव की जुबानी, मंदिर का रहस्य।
गर्मी के मौसम में महज चार महीनों के लिए ही जब बांध का जलस्तर कम होता है तो दर्शन संभव हो पाते हैं। जलमग्र होने के दौरान बाथू की लड़ी तक नावों के सहारे ही पहुंचा जा सकता है। मंदिर के पत्थरों पर माता काली, भगवान गणेश जी की प्रतिमाएं बनी हैं।
मंदिर के अंदरूनी हिस्से में भगवान विष्णु व शेषनाग की मूर्तियां रखी गई हैं। मंदिर के आसपास टापूनुमा जगह है, जिसे रेनसर कहा जाता है। ऐसे रहस्यमयी स्थानों को खोजने में नूरपुर का 26 वर्षीय युवक गौरव दत्त लगा हुआ है।
इस मंदिर के फिल्मांकन को खूबसूरती से निखार कर गौरव ने पेश किया है। इनका यह भी कहना है कि इस तरह के गुमनाम स्थलों को तलाशा जाना चाहिए, ताकि टूरिज्म के क्षेत्र को एक नई दिशा मिल सके।