शिलाई (एमबीएम न्यूज): दुर्घटनाओं में जीवन जाते हैं, फिर कुछ समय के लिए सरकारी व्यवस्था हरकत में आती है। कुछ समय बाद सबकुछ भुला दिया जाता है। लेकिन जिनके परिवारों को जख्म मिलते हैं, वह परिवार ताउम्र हादसों को नहीं भूल सकते।
उपमंडल के ताजा तीन हादसों में 8 जीवन समाप्त हो गए। 9 घायल हैं। फिर पुराना सवाल उठा है, संकीर्ण व जोखिमपूर्ण सडक़ों के किनारे क्यों क्रैश बैरियर नहीं स्थापित हो पा रहे हैं। मतलब साफ है, जिंदगी पर या तो क्रैश बैरियर स्थापित करने का बजट भारी है या फिर विभाग चिरनिद्रा में है। हैरानी की बात यही है कि राज्य लोक निर्माण विभाग के मुख्य संसदीय सचिव विनय कुमार का ताल्लुक भी सिरमौर से है।
रोहनाट के समीप बच्चों ने आंखों के सामने अपनी मां हादसे में खो दी। पिता आज भी जिंदगी व मौत के बीच संघर्ष कर रहा है। नैनीधार में मंगलवार सुबह दो की मौत हुई, तीन बच्चियां समेत चार घायल हुए। अब बुधवार सुबह फिर सडक़ हादसे में मां-बेटे समेत तीन की मौत ने समूची घाटी को गमगीन कर दिया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि सडक़ों के किनारे क्रैश बैरियर होने की स्थिति में वाहन गहरी खाई में लुढक़ने से काफी हद तक बच सकते हैं। यदि चालक कंट्रोल खोता भी है तो टकराकर गाड़ी के रुकने की संभावना रहती है।
पिछले एसडीएम विकास शुक्ला ने सडक़ों को सुरक्षित बनाने के मकसद से भी कई कदम उठाए थे। लेकिन नेताओं को अधिकारी रास नहीं आया, लिहाजा तबादला कर दिया गया। उत्तराखंड की सीमा पर टौंस नदी के किनारे भी सडक़ जोखिमपूर्ण है। हैरानी इस बात पर है कि मुख्य सडक़ों पर ही क्रैश बैरियर नहीं लग रहे हैं। संपर्क मार्गों की हालत तो ओर भी बदत्तर है। एक सैकेंड के सौंवे हिस्से की गलती भी गहरी खाई का रास्ता दिखा देती है।
स्वास्थ्य सुविधाएं..
बता रहे हैं कि नैनीधार हादसे में सबसे नजदीक पीएचसी नैनीधार ही थी। लेकिन मंगलवार को हादसे के वक्त ताला लटका हुआ था। यही हाल रोहनाट का था, क्योंकि चिकित्सकों को शिलाई में डैपुटेशन पर रखा गया है। इसके अलावा हादसों में घायलों को शिलाई में भी पूरी सुविधा नहीं मिलती है। लिहाजा प्राथमिक उपचार के बाद सीधे पांवटा साहिब का रास्ता दिखा दिया जाता है। घायल रोगियों को शिलाई से पांवटा पहुंचने में भी दो से तीन घंटे लग जाते हैं।