शिमला, 30 जून : जलवायु परिवर्तन की वजह से हिमाचल प्रदेश के ग्लेशियरों से बर्फ गायब हो रही है। ये ग्लेशियर लंबे समय से आस-पास रहने वाले लोगों के लिए पानी के स्रोत रहे हैं। हाल के वर्षों में ग्लेशियरों ने कुछ फीसदी बर्फ को खो दिया है। जलवायू परिवर्तन पर गुरूवार को शिमला में आयोजिजत कार्यशाला में उपस्थित वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि अगले 100 वषों में हिमाचल प्रदेश के ग्लेशियरों की ज्यादातर बर्फ गायब हो जाएगी।
मुख्य वक्ता प्रोफेसर अनिल कुलकर्णी, विशिष्ट वैज्ञानिक दिवेचा केन्द्र, इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ साइंस बेंगलुरु ने बताया कि तापमान में 2.6 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि, हिमाचल प्रदेश में सदी के अंत तक ग्लेशियर 79 प्रतिशत बर्फ खो देते हैं और तापमान में 4.1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हिमाचल प्रदेश में सदी के अंत तक ग्लेशियर 87 प्रतिशत बर्फ खो देते हैं। उन्होंने कहा कि वर्ष 2050 में हिमनदों से अपवाह बढ़ेगा और फिर घटना शुरु होगा। हिमकॉस्ट स्थित स्टेट जलवायु परिवर्तन केंद्र शिमला तथा देवीचा जलवायु परिवर्तन केंद्र आईआईएससी बेंगलुरु द्वारा ‘जलवायु परिवर्तन एवं पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र पर नीति निर्माताओं एवं प्रशासन के उच्च अधिकारियों के लिए इस कार्यशाला का आयोजन किया गया।
अतिरिक्त मुख्य सचिव पर्यावरण, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग हिमाचल प्रदेश प्रबोध सक्सेना ने कार्यशाला का शुभारंभ करते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन का मुद्दा वैश्विक चिंता का विषय है तथा पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र जलवायु परिवर्तन के असमय बदलाव के लिए अत्यधिक संवेदनशील है, जो पर्वतीय पर्यावरण को प्रभावित करता है।
उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को दर्शाने में पर्वतों की विशेष भूमिका होती है। हिमालय पारिस्थितिकी तंत्र में लगभग 51 मीलियन लोग पहाड़ी क्षेत्रों में कृषि करते हैं और कृषि में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से प्रभावित होते हैं।
प्रबोध सक्सेना ने कहा कि विगत वर्षों में तेजी से होने वाले विकास में पूरे हिमालय क्षेत्र के पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन केन्द्र की संकल्पना को पूरा करने और अपनी आने वाली पीढ़ियों को एक स्वस्थ, स्थिर और टिकाऊ वातावरण प्रदान करने के लिए कार्य करें। हिमाचल प्रदेश सरकार निश्चित रूप से भविष्य की योजनाओं और नीतियों के निर्माण में इस कार्यशाला के निर्णय एवं सुझावों से लाभान्वित होंगे।
उन्होंने कहा कि हम सभी इस दिशा में एक साथ काम करेंगे ताकि इस हिमालयी राज्य में बदलती जलवायु के लिए विभिन्न अनुकूलन और शमन रणनीतियों को विकसित करने के लिए एक विश्वसनीय वैज्ञानिक डेटाबेस तैयार करेंगे।
ललित जैन, निदेशक, पर्यावरण विज्ञान प्रौद्योगिकी विभाग हिमाचल प्रदेश तथा सदस्य सचिव हिमाचल प्रदेश विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण परिषद हिमकॉस्ट ने कहा कि आज इस दुनिया में शायद ही कोई ऐसा होगा जो जलवायु परिवर्तन से अछूता हो। इसमें विशेष तौर से कृषि पर अधिक प्रभाव पड़ रहा है, जिसके लिए हमें नई नीतियों को बनाने तथा प्रभावों में लाने की आवश्यकता है, जिससे हम जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम कर सके।