शिमला, 7 अक्तूबर: क्या, आप कल्पना करेंगे, हिमाचल में आज भी ऐसे गांव या इलाके मौजूद हैं, जिनका जीवन यापन 19वीं सदी की तरह है। लाजमी तौर पर सवाल उठेगा, ऐसा कैसे।
पहाड़ी प्रदेश (hilly region) के कुल्लू जनपद के बंजार उपमंडल की ग्राम पंचायत गाडा पारली में तीन गांव शाक्टी, मरौड व शुगाड़ ऐसे हैं, जहां बिजली, मोबाइल व सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएं (infrastructural facilities) शून्य हैं। अगर आपातकाल में कोई संदेश प्रशासन या सरकार तक पहुंचाना हो तो इसके लिए विशेष संदेशवाहक को 22 से 30 किलोमीटर लंबी व कठिन दूरी पैदल तय करनी पड़ती है। बता दें कि प्रदेश के कई रिमोट इलाकों (remote areas) में सेटेलाइट फोन की सुविधा उपलब्ध हैं, लेकिन इस इलाके में ये भी उपलब्ध नहीं है।
अक्सर ही इन इलाकों से उपायुक्त आशुतोष गर्ग (IAS Ashutosh Garg) तक पहुंचने वाले लोग अपनी व्यथा का जिक्र किया करते थे। इस पर यंग आईएएस अधिकारी ने एक बार ठान लिया कि वो इन गांवों तक जाकर लोगों की वेदना (pain) को महसूस करेंगे। 5 अक्तूबर 2021 को वो दिन आया, जब उपायुक्त आशुतोष गर्ग अधिकारियों की टोली के साथ ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क (Great Himalayan National Park) में बसे गांवों में ग्रामीणों से मिलने निकल पड़े।
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इस दौरान वो कठिन यात्रा के बावजूद अधिकारियों को निर्देश भी देते रहे। रास्ते में ही उन्होंने हर बारीक पहलू पर गौर किया कि कैसे दूरस्थ गांव को सुविधाएं मुहैया करवाई जा सकती हैं।
पहले दिन चलते-चलते रात हुई तो शाक्टी गांव में फाॅरेस्ट गार्ड हट (Forest Guard Hut) को रात्रि ठहराव के लिए इस्तेमाल किया। चूंकि अधिकारियों की टीम छोटे-छोटे दो कमरों में नहीं रुक सकती थी, लिहाजा जंगल में ही तंबू गाड़ कर रहने की व्यवस्थाओं को भी जुटाया गया। दूरस्थ गांव के लोग अपने बीच उपायुक्त को पाकर बेहद ही उत्साहित हुए। स्थानीय देवता ने भी इस पर खुशी जाहिर की।
गौरतलब है कि कई साल पहले कुल्लू के तत्कालीन उपायुक्त राकेश कंवर ने भी इन गांवों का दौरा किया था। बताते चलें कि इन रिमोट इलाकों से पहले आशुतोष गर्ग पैदल ही ऐतिहासिक गांव (historical village) मलाणा भी पहुंचे थे। वहां, उपायुक्त ने लोगों को वैक्सीन लगवाने के लिए प्रेरित किया था।
बताते हैं कि इन इलाकों में सुविधा मुहैया करवाने की राजनीतिक इच्छाशक्ति (political will) तो रही, लेकिन तकनीकी बाधाएं आड़े आती रही। ऐसा भी नहीं है कि आज के युग में कोई चीज असंभव हो। गांवों की तलहटी से बहती नदी सैंज घाटी को विद्युत नगरी भी बनाती है, लेकिन विडंबना देखिए कि ये गांव अंधेरे में डूबे हुए हैं।
उधर, एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत में उपायुक्त आशुतोष गर्ग ने कहा कि यह सही है कि नेशनल पार्क की वजह से कई दिक्कतें आती हैं। सड़क व अन्य सुविधा से जुड़े मामलों को वाइल्ड लाइफ बोर्ड (wild life board) के समक्ष उठाया जा रहा है। इसके लिए प्रभावी कदम उठाए जाएंगे।
उनका कहना था कि क्षेत्र के कुछ घरों में टीवी व मोबाइल इत्यादि हैं, लेकिन इसका इस्तेमाल नहीं हो पाता। क्षेत्र में तीन गांवों के लिए एक मिडल स्कूल है। उपायुक्त का कहना था कि ग्रामीणों ने मुलाकात के दौरान बताया कि केवल एक ही स्कूल तक बच्चों को पहुंचने के लिए खराब रास्तों का इस्तेमाल करना पड़ता है। नीचे बह रही नदी हमेशा खतरा बनी रहती है।
कुल मिलाकर अब देखना ये होगा कि आखिर हिमाचल के इन 250 बाशिंदों को मोबाइल व घर के हीटर व टीवी चलाने इत्यादि के अलावा अन्य बुनियादी सुविधाएं कब हासिल होंगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि युवा आईएएस अधिकारी की लगभग 60 किलोमीटर की पैदल कठिन यात्रा व्यर्थ नहीं जाएगी।