सोलन, 24 सितंबर : हाल ही में हिमाचल के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग ने सेवा सप्ताह मनाया। इस अवधि में बुजुर्गों की कई जगह से पांव छूते तो कहीं गले मिलते तस्वीरें सामने आई। शिक्षा मंत्री गोविंद ठाकुर ने तो वृद्ध आश्रम में एक बुजुर्ग के नृत्य का वीडियो फेसबुक पेज पर भी अपलोड किया। मगर इसी बीच एक ऐसी कड़वी सच्चाई भी सामने आई है, जिसमें समाज के तिरस्कार का सामना कर रहे बुजुर्गों को सेवा सप्ताह में किसी ने मिलने तक की कोशिश नहीं की।
बड़े-बड़े दावे किए गए कि बुजुर्ग हमारा स्वाभिमान है, हमारी धरोहर है, उन्हें सहेजने की आवश्यकता है। लेकिन चंबाघाट स्थित कुष्ठरोगी केंद्र में कई बुजुर्ग अपनी बदहाली बताते-बताते रो पड़ते हैं। कुष्ठ रोग तो ठीक हो गया, लेकिन दिव्यांगता का शिकार हो गए हैं। ऐसे बुजुर्ग अपने परिवारों में खुशी-खुशी रह सकते हैं, लेकिन अपने भी ठुकरा चुके हैं। विडंबना देखिए कि इन बुजुर्गों को पेंशन तो मिलती है, लेकिन इस पर भी रिश्तेदार हक जता लेते हैं, मगर उन्हें घर ले जाने की बात नहीं करते। इन बुजुर्गों की हालत उस गीत को सार्थक करती है, जिसमें कहा गया है, ‘‘देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान, कितना बदल गया इंसान’’।
कुष्ठ रोग तो ठीक हुआ, लेकिन अपनों ने हाथ जोड़ लिए। बता दें कि सरकार कुम्हारहट्टी में कुष्ठ रोग अस्पताल तो बना रही है, लेकिन कार्य कछुआ गति से चल रहा है। कुष्ठ रोगियों का कहना है कि चंबाघाट स्थित केंद्रों में कई परेशानियों से दो-चार होना पड़ रहा है। यहां तैनात स्टाफ की प्रशंसा करते भी नहीं थकते। कमाल की बात देखिए, आज तक भी ऐसे परिवारों की मानसिकता में परिवर्तन नहीं आया है, जिनके पारिवारिक सदस्य कुष्ठ रोग को हरा चुके हैं।
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ये हालत, उस राज्य की है, जहां साक्षरता की स्थिति बेहतर होने के दावे किए जाते हैं। चंबाघाट स्थित केंद्र की स्टाफ नर्स बताती है कि कुछ लोग अपने घर जाने लायक है, लेकिन भ्रांतियों के चलते परिवारों ने इनका तिरस्कार किया हुआ है।
कुष्ठ रोग…
कुष्ठ रोग का इलाज संभव है। डब्ल्यूएचओ ने 1995 में मल्टी ड्रग थैरेपी के इस्तेमाल से इसके संक्रमण को खत्म करने की बात कही थी। भारत सरकार कुष्ठ रोग के लिए निशुल्क इलाज उपलब्ध करवाती है। हालांकि बहुुत से लोग भेदभाव व समाज में फैली अवधारणाओं के कारण इलाज नहीं करवाते। जानकारों के मुताबिक शुरूआती अवस्था में जल्द ही कुष्ठ रोग का निदारण हो जाता है, अन्यथा 6 महीने से डेढ़ साल के बीच में इस बीमारी को पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है।
चूंकि कुष्ठ रोग एक जीर्ण संक्रमण है, यही कारण है, इसको लेकर कई भ्रांतियां रहती हैं। इसका असर व्यक्ति की त्वचा, आंखों, श्वसन तंत्र इत्यादि पर पड़ता है। मरीजों को अक्सर सामाजिक उत्पीड़न का सामना करना पडता है। इसमें सबसे बड़ी अवधारणा ये है कि हर कोई ये मानता है कि यह छूने से होता है, जबकि हकीकत में ऐसा नहीं है।