शिमला (एमबीएम न्यूज़) : देश के लिए लड़ते हुए जवान शहीद हो गया। शहादत के 13 महीने बाद भी जवान का परिवार घोषित मुआवजे और नौकरी के लिए दर-दर भटकता रहा। सीएम से लेकर पीएमओ तक फरीयाद लगाने के बाद आखिरकार सरकार ने उनकी सुध नहीं ली। बात हो रही है, 22 मई 2016 को मणिपुर में उग्रवादियों से लोहा लेते हुए शहीद हुए बिलासपुर के शाहतलाई के रहने वाले बलदेव कुमार शर्मा की। जिनके परिवार ने घोषणा को पूरा न करने पर पीएमओ तक भी गुहार लगा दी।
शहीद के बेटे विवेक शर्मा और बेटी प्रियंका शर्मा ने आज शिमला में मीडिया के समक्ष बताया कि उनके पिता जब आतंकवादी हमले में शहीद हुए थे, तब सरकार व प्रशासन ने परिवार के साथ बड़े-बड़े वायदे किए थे। उस समय बोला था कि बेटे को सरकारी नौकरी देंगे। स्थानीय राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला शाहतलाई का नाम उनके शहीद पिता के नाम पर करेंगे और 5 लाख की आर्थिक मदद करेंगे।
विवेक शर्मा ने बताया कि कार्यालयों के चक्कर लगाने के बाद राशि सैनिक कल्याण बोर्ड, बिलासपुर की तरफ से डेढ लाख रूपये की राशि के अलावा परिवार को कुछ नहीं मिला है। वह पिछले एक साल से राज्य सचिवालय, नेताओं और सरकार के चक्कर काट रहा है। सैनिक कल्याण एवं आधिकारिता मंत्री धनीराम शांडिल ने परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने की घोषणा उनके घर पर आकर की थी, मगर अब सरकार अपने सभी किए वायदे और घोषणाएं भूल गई है।
उन्होंने कहा कि उनके पिता को अर्धसैनिक बल में तैनाती का हवाला देकर सरकार अपनी घोषणाओं को पूरा करने से बच रही है। इस बारे में मुख्यमंत्री से भी बात की, लेकिन उनसे भी महज आश्वासन ही मिला।
शहीद के बेटे ने कहा कि मोदी सरकार ने घोषणा कर दी है कि सैनिक और अर्धसैनिक बलों में कोई फर्क नहीं रहेगा, तो इस तरह का भेदभाव क्यों हो रहा है। उन्होंने कहा कि पिता के शहीद होने के बाद घर की सारी जिम्मेदारी मेरे कंधे पर आ गई है। घर में और कोई कमाने वाला नहीं है। घर में माता और बहन है। बहन अभी एमकाॅम की पढाई कर रही है।
विवेक शर्मा ने कहा कि नौकरी को लेकर केंद्र सरकार से भी गुहार लगाई थी, जिसमें जवाब आया कि शिलांग में होने वाली भर्ती में कोशिश करें। यह गृह मंत्रालय की ओर से भेजे गए पत्र का जवाब था। शिलांग में भर्ती प्रक्रिया में हिस्सा लिया। दौड़, मैडिकल, टाईपिंग आदि बस कुछ में हिस्सा लिया। लेकिन बाद में मेरिट बनी, जिसमें मेरा नाम नहीं था। उन्होंने कहा कि जब एक शहीद के बेटे से सारी कागजी कारवाई पूरी करा ली, तो उसे नौकरी देनी चाहिए थी, क्योंकि अगर नौकरी नहीं देनी थी, तो शिलांग क्यों बुलाया गया ?
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार, शहीदों के परिजनों के प्रति पूरी तरह समर्पित होने का दावा करती है, तो फिर उसके परिवार की स्थिति को देखते हुए वायदे के अनुसार नौकरी देने के प्रति गंभीरता क्यों नहीं दिखा रही है। उन्होंने कह कि न्याय की यह लड़ाई केवल मात्र उनकी नहीं है। बल्कि और भी शहीदों के ऐसे परिवार हैं, जिनके साथ केंद्र व राज्य सरकारें वादे करके पीछे हट चुकी हैं।
शहीद की बेटी प्रियंका शर्मा ने बताया कि वो चंडीगढ़ में एमकाॅम की पढ़ाई कर रही है। मां गृहणी हैं। ऐसे में उनके परिवार चलाने का पूरा जिम्मा भाई के कंधे पर ही है। उन्होंने कहा कि सरकार को अपने किए गए वायदे को पूरा करना चाहिए।