दिनेश कुंडलस/कोलर (नाहन)
पहाड़ी राज्य एम्स व हरेक जिला में मेडिकल कॉलेज के सपने देख रहा है। सरकारी योजनाओं में स्वास्थ्य संस्थानों में प्रसूति के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, मगर जंगलों में जीवन बिताने वाले गुज्जरों के लिए अस्पताल की सुविधाएं आज भी एक सपना ही हैं। माजरा से पहले 9 महीने की गर्भवती फातिमा को पांवटा साहिब रैफर किया जाता है। पांवटा साहिब से शाम 4 बजे के आसपास महिला को नाहन मेडिकल कॉलेज ले जाने को कहा जाता है, लेकिन 108 एंबूलेंस सेवा का कोई अता-पता नहीं होता है।
आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि 9 महीने की गर्भवती फातिमा को लेकर उसका चाचा इब्राहिम बाइक पर ही नाहन के लिए चल पड़ता है। लेकिन 22 किलोमीटर के बाद कोलर में बाइक खराब हो जाती है। स्थानीय लोग मदद के लिए आगे आना शुरू हो जाते हैं। एमबीएम न्यूज प्रतिनिधि द्वारा 7 बजे के आसपास 108 से संपर्क किया जाता है तो डेढ़ घंटे इंतजार के लिए कहा जाता है। इसके बाद स्थानीय लोगों की मदद से टैक्सी का इंतजाम करवा कर महिला को नाहन भेजा जाता है।
अंतिम समाचार तक 9 माह की गर्भवती फातिमा मेडिकल कॉलेज नहीं पहुंची थी। फातिमा के परिजनों की मानें तो पांवटा साहिब में 108 में बिठा भी दिया गया था, लेकिन कुछ देर में ही यह कहकर उतार दिया गया कि कोई ओर एंबूलेंस आएगी। घंटों के इंतजार के बाद भी दूसरी एंबूलेंस नहीं आई। रास्ते में एक खाली 108 एंबूलेंस भी नाहन की तरफ आती मिली। चालक से गुजारिश की गई तो कहा गया कि शंभूवाला से 70 साल के हार्ट रोगी को ले जाना है।
कुल मिलाकर इस घटना ने व्यवस्था की पोल तो खोली ही है, साथ ही उन दांवों को भी झूठा साबित कर दिया है, जिसमें आधुनिक चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करने के दावे किए जाते हैं। इसमें अहम बात यह है कि 108 सेवा के पास भी अपने बचाव के लिए कई बहाने मौजूद होंगे। धरातल पर कोई सुधार होगा या नहीं, इस बात पर हमेशा की तरह अब भी संशय ही रहेगा।