एमबीएम न्यूज/नाहन
हिमाचल प्रदेश में करीब दो हजार आरक्षियों को एक अजीब मानसिक अवसाद से गुजरना पड़ रहा है। कहने को तो सरकार के नियमित कर्मचारी हैं, लेकिन वेतन अनुबंध कर्मियों वाला मिल रहा है। 2015 के बाद जितनी भी पुलिस भर्ती हुई हैं, उन्हें संशोधित लाभों से वंचित रखा जा रहा है। अनुशासनात्मक फोर्स होने के कारण वह अपने हित की आवाज भी नहीं उठा पाते हैं। सरकार की नाक, आंख व कान कहे जाने वाले पुलिस जवान प्रदेश सरकार के भेदभाव के शिकार हैं।
पुलिस कल्याण संघ ने इस मामले को सरकार के साथ प्रमुखता से उठाया। इसके बाद 2013 के बैच का मामला सैटल हुआ। शेष सिपाहियों को भी यह उम्मीद है कि सरकार जल्द ही 2015 के बाद भर्ती कांस्टेबलों के जल्द नियमित वेतनमान जारी करेगी। उधर वित विभाग ने 14 जनवरी 2015 व 17 जून 2016 को पुलिस महकमे के लिए नए निर्देश जारी किए थे। इनमें नियमित कांस्टेबलों के लिए नया वेतनमान देने के लिए आठ साल की शर्त रखी गई थी। यह शर्त एक जनवरी 2015 और इसके बाद होने वाली सभी भर्तियों पर लागू हुई। 2013 के नियुक्त आरक्षियों पर भी इसे जबरन लागू किया गया। उन्हें बाद में राहत दी गई।
डीजीपी एसआर मरडी ने वेतनमान की खाई को पाटने का बीड़ा उठाया है। उन्होंने इस संबंध में मुख्यमंत्री व अतिरिक्त सचिव को पत्र लिखा है, जिसमें उल्लेख किया गया है कि आरक्षियों को मिलने वाले नियमित पे बैंड व ग्रेड पे के लाभ को आठ साल की बजाय तीन साल में दिया जाए।