नाहन (शैलेंद्र कालरा): करीब तीन दशक पहले चूड़धार चोटी पर स्वामी श्यामानंद जी महाराज ने बेहद जटिल परिस्थितियों में तप किया। उस वक्त चोटी पर न तो कोई उनके साथ सेवक मौजूद होता था। न ही बिजली व अन्य सुविधाएं। केवल साधना व तप के बूते ही स्वामी श्यामानंद जी ने चोटी पर जिंदगी को जीने का एक अलग तरीका एक साधक के तौर पर अपनाया।
एक महान तपस्वी स्वामी श्यामानंद जी ने 25 दिसंबर 2005 को नेरीपुल में समाधि ले ली। हर साल तपस्वी स्वामी श्यामानंद जी की समाधि पर धार्मिक अनुष्ठान का आयोजन होता है। अब स्वामी श्यामानंद जी के शिष्य ब्रह्मचारी विरेंद्रानंद व ब्रह्मचारी कमलानंद उनके पदचिन्हों पर आगे चल रहे हैं। लेकिन अब चोटी पर कई सुविधाएं आ गई हैं। इसमें मोबाइल, बिजली व खाद्य सामग्री इत्यादि शामिल हैं। मतलब साफ है, तीन दशक पहले जब अकेले ही स्वामी श्यामानंद जी ने अकेले ही चोटी पर जीवन यापन किया होगा तो क्या परिस्थितियां रहीं होंगी। इसकी कल्पना भी शायद नहीं की जा सकती।
एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत करते हुए स्वामी कमलानंद जी महाराज ने कहा कि तीन दशक पहले चोटी पर 30 फुट बर्फ भी पड़ जाया करती थी, यह बात उन्हें गुरुजी ने बताई थी। दीगर है कि स्वामी कमलानंद जी अपने एक सेवक कृष्ण के साथ इस वक्त चोटी पर मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि गुरु जी की कृपा से ही चोटी पर आज सुविधाएं पहुंची हैं। ताजा मौसम के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि पिछले तीन-चार दिनों से बर्फबारी के कारण आश्रम से बाहर नहीं निकले हैं। प्राचीन शिरगुल मंदिर तक पहुंचने के लिए सुरंग का इस्तेमाल किया जा रहा है।
कुल मिलाकर शायद आज तो चोटी के प्रति आस्था रखने वाली युवा पीढ़ी इस बात से तो परिचित है कि भारी बर्फबारी के बीच भी शिरगुल देवता के प्राचीन मंदिर में पूजा-अर्चना की जा रही है। लेकिन शायद मौजूदा पीढ़ी इस बात से अनभिज्ञ होगी कि 1970 में चोटी पर पहुंचे तपस्वी गुरु श्यामानंद जी महाराज ने 12 साल तक न केवल मौनव्रत रखा, बल्कि 30 फुट तक बर्फ पड़ जाने के बावजूद भी अपनी साधना के बूते खुद को जीवित रखा।