कुल्लू (एमबीएम न्यूज) : लाहौल घाटी से मणिमहेश यात्रा का आगाज हो चुका है। प्रतिदिन शिवभक्तों का जत्था पैदल ही कैलाशपति के जयकारों के बीच गंतव्य पर आगे बढ रहा है। 4 दिवसीय इस पैदल यात्रा में जिज्ञासा व आस्था से श्रद्धालु पूरी तरह से सराबोर हो जाते है। संपूर्ण यात्रा दुर्गम पहाडियों, दर्रो, नालों व हिमखंडों से होकर गुजरती है। लाहौली धर्म समाज में भी भोलेशंकर की आस्था का महत्वपूर्ण स्थान है।
ऐसी धारणा है कि मणिमहेश यात्रा से हरेक मनोकामना पूरी होती है। यात्रा का पहला पडाव जोवरंग है। जहां श्रद्धालु खोडदेव पत्थर पर पहुंचकर विश्राम करते है। यहां भगवान शिव व माता दुर्गा की मूर्तियां भी स्थापित है। यात्री विश्राम एलियास में होता है। दूसरे दिन कठिन चढाई पार कर कुगंती दर्रा पार करना होता है। माता की पूजा अर्चना के दौरान केलींग मंदिर तक पहुंचा जाता है। यहां सराय में श्रद्धालु विश्राम करते है।
यात्रा मार्ग में श्रद्धालु कैलाशपति के जयघोष के साथ ऊंचे गंतव्य की तरफ आगे बढते है। तीसरे दिन श्रद्धालु दूरेटू नामक स्थान पार कर ढढीएलयास में रात्रि विश्राम करते है। चौथे दिन भी ढढी दर्रा पार करने की चुनौती होती है। जहां से मणिमहेश की पवित्र झील के प्रथम दर्शन होते है।
दर्रे से नीचे उतरकर हिमनदी को पैदल पार कर श्रद्धालु मणिमहेश झील पहुंचते है। जहां स्नान व पूजा अर्चना पश्चात उसी मार्ग से वापिस आया जा सकता है या फिर दूसरे विकल्प के तौर पर भरमौर, चंबा-कांगडा से वापिस कुल्लू पहुंचा जा सकता है।