मंडी : तीन धर्मों की संगम स्थली रिवालसर इन दिनों न सिर्फ देश में बल्कि विदेशों में भी चर्चा का विषय बनी हुई है। देश-विदेश के बौद्ध अनुयायियों के यहां पहुंचने का सिलसिला भी शुरू हो गया है। कारण, यहां के प्रसिद्ध बौद्ध मंदिर के प्रमुख लामा का समाधि में लीन होना। बौद्ध मंदिर रिवालसर के प्रमुख लामा 87 वर्षीय वांगडोर रिम्पोछे उर्फ ओंगदू बीती 18 सितंबर को देह त्यागकर समाधि में लीन हो गए हैं। 6 दिन बीत जाने के बाद भी लामा के शरीर का दाह संस्कार नहीं किया गया है।
बिस्तर पर जिस अवस्था में उन्होंने अपनी देह त्यागी उनका शरीर अभी भी उसी अवस्था में पड़ा हुआ है। 6 दिन बीत जाने के बाद भी शरीर को किसी प्रकार का कोई नुकसान नहीं पहुंचा है। प्रत्यक्ष रूप से इसे देखने पर ऐसा प्रतीत हो रहा है, जैसे लामा गहरी नींद में आराम कर रहे हों और अभी उठकर बात करने लग जाएंगे। शरीर को उसी अवस्था में रखकर बौद्ध अनुयायियों ने अपने रिति रिवाजों के तहत पूजा-पाठ करना शुरू कर दिया है। बताया जा रहा है कि जब तक लामा का शरीर दाह संस्कार का अहसास नहीं करवाएगा तब तक उसे इसी अवस्था में रखा जाएगा।
भविष्य में जब दाह संस्कार की जरूरत महसूस होगी तभी इस दिशा में आगे बढ़ा जाएगा। दाह संस्कार को लेकर जिगर मूर्ति बौद्ध मन्दिर का काम- काज देख रही अनी बुमछुंग ने बताया लामा ने जीते जी भी तपस्या की और अब समाधि में लीन होकर भी तपस्या कर रहे हैं। अभी यह तपस्या कितने दिन चलेगी इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। उन्होंने बताया कि अब लामा भगवान बन जाएंगें और यह सभी के लिए खुशी की बात होगी।
लामा रिम्पोछे के इस प्रकार समाधि में लीन होने से उनके अनुयायियों को काफी आघात पहुंचा है। देश-विदेश से उनके अनुयायियों को यहां आने का क्रम शुरू हो गया है। सभी लामा के अंतिम दर्शन करके यहां पूजा पाठ में भाग ले रहे हैं। स्पेन से लामा के दर्शन करने आए ओसे ने बताया कि लामा रिम्पोछे ने जो ध्यान और साधना की आज उसका सभी को लाभ मिल रहा है। उन्होंने कहा कि लामा की कमी को कभी पूरा नहीं किया जा सकता और अब वह समाधि में लीन हो गए हैं।
लामा वांगडोर रिम्पोछे की सबसे प्रिय शिष्या लीना भी अमेरिका से रिवालसर पहुंच गई हैं। मीडिया से बातचीत में लीना ने लामा रिम्पोछे के बारे में कई अहम जानकारियां दी। उन्होंने बताया कि लामा रिम्पोछे वर्ष 1958 में तिब्बत से अपने गुरू को अपनी पीठ पर लादकर रिवालसर की पहाड़ियों पर पहुंचे थे। रिवालसर की पहाड़ियों पर उन्होंने तपस्या की और बड़े तपस्वी तथा सिद्धपुरुष बने। लीना ने बताया कि उन्होंने बौद्ध धर्म की शिक्षा लामा रिम्पोछे से ही ली थी।
लामा रिम्पोछे का सपना गुरू पदमसम्भव की रिवालसर में भव्य मूर्ति बनवाना था और इस सपने को उन्होंने अपने जीते जी पूरा भी किया। बता दें कि यह मूर्ति विश्व में गुरू पदमसम्भव की सबसे बड़ी मूर्ति है। जिसके निर्माण पर करोड़ों की राशि खर्च की गई है। बता दें कि रिवालसर को तीन धर्मों की संगम स्थली के नाम से जाना जाता है। यहां हिंदू, सिक्ख और बौद्ध धर्म के लोग आपसी भाईचारे और सौहार्द के साथ रहते हैं। लामा के देह त्यागने से न सिर्फ बौद्ध धर्म के लोग आहत हुए हैं। बल्कि हिंदू और सिक्ख धर्म के लोगों में भी मायूसी देखने को मिल रही है। क्योंकि लामा रिम्पोछे सर्व समाज के हितकर माने जाते थे।