चंबा: जनजातीय क्षेत्र भरमौर स्थित भरमाणी माता मंदिर और इस पवित्र कुंड में स्नान के बाद ही पवित्र मणिमहेश यात्रा पूरी मानी जाती है। ऐसी मान्यता सदियों से चली आ रही है। मणिमहेश यात्रा पर देश के कोने-कोने से पहुंचने वाले शिव भक्त सर्वप्रथम माता भरमाणी के दर्शनों के लिए पहुंचकर पवित्र कुंड में स्नान कर पुण्य प्राप्ति की तरफ कदम बढ़ाते हैं। समुद्र तल से नौ हजार फीट की ऊंचाई पर डुगा नामक स्थान पर मां भरमाणी का मंदिर है।
पवित्र मणिमहेश यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण व पहला पड़ाव मां भरमाणी है। गौरतलब है कि सर्वप्रथम मां भरमाणी का मंदिर चौरासी परिसर में हुआ करता था। उस दौरान चौरासी में पुरूष जाति का विश्राम निषेध था। एक बार जब चौरासी सिद्घ और नौ नाथ मणिमहेेश यात्रा के दौरान चौरासी पहुंचे। चौरासी सिद्घों और नौ नाथ ने वहां पर समतल जगह देख कर वहीं पर ही डेरा जमा लिया। मां भरमाणी ने वहां पर पुरषों को देख कर सभी सिद्घों को वहां से शाम को दूसरी जगह पर डेेरा डालने की बात कही। जिस पर सिद्घों ने वहां से दूसरी जगह जाने के लिए मना कर दिया।
जिस कारण मां भरमाणी क्रोधित हो उठी। मां को क्रोधित होते देख कर सभी सिद्घ अपने मुख्य सिद्घ के पास गए। माता द्वारा वहां पर रात्रि ठहराव न करने की बात कही। इसके बाद मां भरमाणी भी मुख्य सिद्घ के पास पहुंची। माता ने जब मुख्य सिद्घ को देखा तो वे दंग रह गई। मुख्य सिद्घ भगवान शंकर थे। मां भरमाणी ने भगवान शंकर को बताया कि चौरासी परिसर पर उनका वास होने की सूरत में यहां पर पुरूष जाति का ठहराव संभव नहीं है।
जिस पर भगवान शंकर ने बताया कि यात्रा पर पुरूष जाति के उनके भक्त भी आते हैं। ऐसे में उन्हें यहां से दूसरी जगह जाना पड़ेगा। उसके बाद मां भरमाणी चौरासी से ढ़ाई किलोमीटर दूर डुगा नामक स्थान जा बसी। वर्तमान समय में डुगा नामक स्थान पर भरमाणी माता का मंदिर बना हुआ है और माता यहां पर विराजमान हैं।