हमीरपुर : हिमाचल को देवभूमि के नाम से जाना जाता है, लेकिन यहां पर ऐसी कई मान्यताएं है जिन पर यकीन करना शायद आम इंसान के बस में नहीं है। कहावत है कि अगर उजाला है, तो अंधेरा भी होगा। बता दें कि हमारा मक़सद किसी को डराना या अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है, लेकिन जिला के कुछ क्षेत्रों में आज से दो दिन तक डगयाली (चुड़ैल) की रात मानी जाती है। इन दो रातों को उवास व डुवास के रूप में जाना जाता है।
मान्यता है कि इन दो रातों को काली शक्तियों का प्रभाव ज्यादा रहता है। इन दो रातों में यहां के लोग ख़ौफ़ के साए में जीते हैं। ऐसा माना जाता है कि इन दो रातों में काली नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव अधिक रहता है। जिनमें तांत्रिक साल में एक बार काली शक्तियों को जागृत करने के लिए साधना करते हैं। जिनसे बचने के लिए यहां के लोग अपने घरों के बाहर टिंबर के पत्ते लटकाते हैं। अपने देव-देवताओं की पूजा-अर्चना भी करते हैं। भाद्रपद मास को वैसे भी काला महीना कहा जाता है।
ऐसा माना जाता है कि इस माह सभी देवी-देवता सृष्टि की रक्षा छोड़ असुरों के साथ युद्ध करके अपनी शक्तियों का प्रर्दशन करने अज्ञात प्रवास पर चले जाते हैं। इस माह की अमावस्या की रात को ही डगैली या चुड़ैल की रात कहा जाता है। इस बार 29 और 30 अगस्त को उवास व डुगास की काली रातें हैं। ऐसी मान्यता है कि इस अमावस्या की रात को जितने भी काली विद्या वाले तांत्रिक होते हैं, वह काली शक्तियों को जागृत कर किसी का अहित करने के लिए तंत्र का सहारा लेते हैं।
शमशान से लेकर घरों तक काली शक्तियों का राज होता है, जिनसे बचने के लिए ऊपरी शिमला में तो देवता रात भर खेलते हैं और अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। वहीं सूबे के कई जिलों में इस माह को लेकर कुछ इसी तरह की धारणा है। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान देवता बुरी शक्तियों से लड़ाई करने चले जाते है जिस डर के कारण लोग अपने घरों के बाहर दीए जलाकर बुरी शक्तियों को भगाने का आह्वान करते हैं।
ऐसा भी कहा जाता है इस देवताओं और बुरी शक्तियों के बीच की लड़ाई में यदि देवता जीत जाते हैं तो पूरा साल सुख शांति से गुजऱता है। यदि देव-दानव के इस युद्ध में देवता हार जाते हैं तो प्राकृतिक आपदाओं का बोलबाला रहता है।