सूबे के कांगड़ा के पौंग डैम में स्थित बाथू मंदिर के दीदार के लिए सैलानियों को अब ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ेगा। पर्यटक अगले माह से मंदिर का दीदार कर सकेंगे। बाथू मंदिर साल के आठ माह तक पानी में पूरी तरह से डूबा रहता है। आगामी माह में जलस्तर कम होने से इसके बाद के चार माह तक पर्यटक बाथू मंदिर के दर्शन कर सकेंगे। मंदिर को देखने के लिए हर साल हजारों पर्यटक पहुंचते हैं। बाथू मंदिर को बाथू की लड़ी भी कहा जाता है। पांडवों ने इस मंदिर की स्थापना की थी। पौंग डैम में पूरी तरह से डूबा रहने वाला बाथू मंदिर पर्यटकों के लिए चार माह तक आकर्षण का केंद्र बना रहता है। दूर-दराज से पर्यटक मंदिर को देखने के लिए पहुंचते हैं। उल्लेखनीय है कि भारत चमत्कारों का देश माना जाता है। यहां पर कई जगह ऐसी हैं, जहां पर देश-विदेश से टूरिस्ट यहां का इतिहास जानने आते हैं। महाभारत और रामायण काल की ऐसी ही कई जगह हैं, जिन्हें देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं। इन जगहों से जुड़ी हुई कई कहानियां हैं।
आज हम आपको ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं। जिसकी कहानी महाभारत से जुड़ी हुई है। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में कुछ ऐसे मंदिर हैं, जो साल के आठ महीने पानी में डूबे रहते हैं। ऐसा यहां स्थित पौंग डैम के कारण होता है, जिसका पानी चढ़ता-उतरता रहता है।
‘बाथू की लड़ी’ कहलाते हैं ये मंदिर…
पौंग डैम के महाराणा प्रताप सागर झील में डूबे इस मंदिर को बाथू मंदिर के नाम से जाना जाता है। स्थानीय लोग इसे ‘बाथू की लड़ी’ कहते हैं। ये मंदिर 70 के दशक में इस डैम के पानी में डूब गए थे। ये मंदिर गर्मी के मौसम में केवल चार महीनों के लिए खुलते हैं। साल के बाकी आठ महीने ये पानी में डूबे रहते हैं, जहां केवल नाव से ही पहुंचा जा सकता है।
पांडव बनवाना चाहते थे स्वर्ग की सीढ़ी..
इन मंदिरों के निर्माण के बारे में कहा जाता है कि इन्हें महाभारत काल में पांडवों ने बनवाया था । कहते हैं, पांडवों ने यहां स्वर्ग जाने के लिए सीढ़ी बनवाने का भी प्रयास किया था, जो कि अधूरी रह गई। इन मंदिरों को पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान केवल एक रात में बनवाया था। वर्तमान में इन मंदिरों को देखने के लिए यहां हर साल हजारों टूरिस्ट पहुंचते हैं।
कैसे पहुंचे..
इस मंदिर तक पहुंचने का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा गग्गल हवाई अड्डा है। गग्गल हवाई अड्डे से इस मंदिर की दूरी डेढ़ घंटे है। पर्यटक रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डे से ज्वाली पहुंच सकते हैं, जहां से इस मंदिर की दूरी 37 किमी की है। ज्वाली से बाथू की लड़ी पहुंचने के दो रास्ते हैं, एक जिससे बाथू तक आधे घंटे में पहुंचा जा सकता है। वहीं दूसरे रास्ते से आपको इस मंदिर तक पहुंचने में करीब 40 मिनट का वक्त लगता है। अगर आप ट्रेन से जाना चाहते हैं, तो कांगड़ा रेलवे स्टेशन उतरकर किसी टैक्सी की मदद से यहां पहुंच सकते हैं।
घूमने के लिए….
इस मंदिर में केवल मई-जून में ही जा सकते हैं। बाकी महीने यह मंदिर पानी में डूबा रहता है। हमीरपुर वाइल्ड लाइफ के अधिकारी कृष्ण कुमार ने कहा कि पानी का जल स्तर अगले माह घटेगा तो ही मंदिर लोगों के लिए खोल दिया जाएगा। कृष्ण कुमार ने स्पष्ट किया कि मंदिर में प्रवेश के लिए कोई एंट्री फीस विभाग की ओर से नहीं ली जाती। यदि कोई एंजेंट फीस मांगता है तो तुरंत इसकी शिकायत विभाग से करें।