मंडी(वी कुमार) : देव कमरूनाग को जनपद का अराध्य देव माना जाता है। कभी देव कमरूनाग पांडवो के अराध्य थे लेकिन आज पूरे जनपद के अराध्य हैं। वर्ष में सिर्फ एक बार जिला मुख्यालय पर आने वाले देव कमरूनाग के दर्शनों के लिए जन सैलाब उमड़ पड़ता है।
देव कमरूनाग : भक्त सिर्फ हिमाचल प्रदेश ही नहीं बल्कि समूचे उत्तरी भारत में मौजूद हैं। जिला मुख्यालय से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर देव कमरूनाग का मूल स्थान स्थित है। इसलिए जब देव कमरूनाग मंडी आते हैं तो इनके दर्शनों के लिए जन सैलाब उमड़ पड़ता है। देव कमरूनाग वर्ष में सिर्फ एक बार शिवरात्रि महोत्सव के दौरान ही मंडी आते हैं और उनका यह प्रवास सिर्फ 7 दिनों का ही होता है। देव कमरूनाग को मंडी जनपद का अराध्य देव माना जाता है इसलिए इन्हें बड़ा देव भी कहा जाता है।
देव कमरूनाग कभी किसी वाहन में नहीं जाते, न इनका कोई देवरथ है और न ही कोई पालकी, सिर्फ एक छड़ी के रूप में इनकी प्रतिमा को लाया जाता है। 100 किलोमीटर का पैदल सफर तय करने के बाद देव कमरूनाग के कारदार मंडी पहुंचते हैं। इनके आगमन के बाद ही अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव शुरू होता है। देव कमरूनाग सात दिनों तक टारना माता मंदिर में ही विराजमान रहते हैं। देव कमरूनाग को बारिश का देवता भी माना जाता है।
जब कभी सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाए तो जनपद के लोग देवता के दरबार जाकर बारिश की गुहार लगाते हैं। वहीं लोग अपनी अन्य मनोकामनाओं को लेकर भी देवता के दर पर पहुंचते हैं। लोगों की देव कमरूनाग के प्रति अटूट आस्था है, यही कारण है कि लोग वर्ष में सिर्फ एक बार होने वाले देव कमरूनाग के आगमन का बेसब्री से इंतजार करते हैं। दंत कथाओं के अनुसार महाभारत काल के रत्तन यक्ष ही देव कमरूनाग हैं।
रत्तन यक्ष महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से युद्ध में शामिल होने के लिए जा रहे थे। इस बात की भनक भगवान श्रीकृष्ण को लग गई। उन्हें रत्तन यक्ष की शक्ति का अंदाजा था। ऐसे में पांडव कौरवों को कुरूक्षेत्र के रण में हराने में असमर्थ होते, भगवान श्रीकृष्ण ने छलपूर्वक रत्तन यक्ष की परीक्षा लेते हुए उनका सर वरदान में मांग लिया।
रत्तन यक्ष ने महाभारत का युद्ध देखने की दच्छा जाहिर की। इसे स्वीकार करते हुए श्रीकृष्ण ने युद्ध स्थल के बीचोंबीच उनका सिर बांस के डंडे से ऊंचाई पर बांध दिया। युद्ध के बाद पांडवों ने कमरूनाग के रूप में रत्तन यक्ष को अपना आराध्यदेव माना। पांडवों के हिमालय प्रवास के दौरान कमरूनाग की पहाडियों में स्थापित कर दिया।