मण्डी (वी कुमार): जिला की करसोग घाटी में 19वीं शताब्दी में सबसे पहले परसराम चौधरी महावन गांव तथा करसोग से 35 किलोमीटर दूर चमनपुर नामक स्थान पर धर्म प्रकाश पुत्र गंगाराम ने सेब की लोकप्रिय डेलिशियस किस्म का पौध रोपण किया गया । उस समय शायद ही किसी ने सोचा होगा कि यह पहल करसोग घाटी के भविष्य में आर्थिक क्रांतिकारी परिवर्तन लाएगी।
धीरे-धीरे इन बागीचों को देख कर घाटी में सेब बागवानी की तरफ लोगों का रूझान बढ़ने लगा और अब इनकी संख्या हजारों में पहुंच गई है। वर्ष 2014-2015 में घाटी में लगभग 6000 हजार हैक्टेयर क्षेत्रफल में सेब की बागवानी दर्ज की गई जो वर्ष 2016-2017 में 7500 हैक्टेयर तक पहुंच गई है। करसोग घाटी की जलवायु सेब के लिए उपयुक्त तथा बागवान वैज्ञानिक तकनीकी से उन्नत किस्म के पौधे लगा कर अच्छी फसल से अपनी आर्थिकी मजबूत कर रहा है।
घाटी में प्रगतिशील बागवान वीएस रावत नें एमएम-106 कनोनल रूट स्टाॅक पर अल्ट्रा हाई डेंसिटी के पौधे लगभग 40 बीघा भूमि में लगाकर बागवानों के लिए एक मिसाल प्रस्तुत की इै। वहीं राजेश कुमार सुपुत्र संतराम हरिबाग, डाकघर महोग नें भी इतनी ही भूमि में वैज्ञानिक तकनीक द्वारा अपने बागीचे को तैयार किया है।
इन्हीं बागवानों की प्रेरणा से आज घाटी में प्रगतिषील बागवानों में गांव महोग के हुक्म चन्द, गांव मरोठी से राकेश तथा हेमराज, खूवचन्द गांव दृहल, शुक्रुराम गांव सनारली, बोधराज गांव शोपा तथा मिलाप चन्द, गांव पलोग ने सेब के पौधे लगा कर वातावरण को हराभरा रखने के साथ-साथ अपनी आर्थिकी में भी सुधार किया है।
करसोग घाटी को भौगोलिक दृष्टि से तीन भागों में बाँटा जा सकता है। 6500 फीट से ऊपर यहां पर राॅयल डैलिसियस, टाॅप रैड, वास डैलिसियस तथा गोल्डन सेब के पौधे देखे जा सकते हैं। अधिक उचाॅंई पर तापमान कम होने के कारण पौधों में बिमारियां कम लगती हैं। पौधों में बिमारी कम लगने से जहां पौधा स्वस्थ होता है वहीं पर फल भी स्वादिष्ट तथा गुणवता पूर्ण होता है। 4000 फीट से 6500 फीट की ऊंचाई वाले क्षेत्र को मध्यम ऊंचाई वाले क्षेत्र में आते हैं।
इनमें सुपर चीफ, रैड चीफ, आॅरीगन स्पर, सिल्वर स्पर, वैल स्पर, स्करलेट स्पर सेब को घाटी में देखा जा सकता है। 4000 फीट से नीचे के क्षेत्र को निम्न ऊंचाई वाले क्षेत्र कहा जाता है जिनमें माईकल, मोलस डैलिसियस, अन्ना, डोरसैट गोल्डन लगाया गया है।
प्रदेश सरकार बागवानी को बढ़ावा देने के लिए किसानों को अनुदान देकर विदेशों तथा सरकारी नर्सरियों से क्लोनल विधि द्वारा तैयार किए गए अच्छी किस्म के रूट स्टाॅक उपल्ब्ध करवा रही है। डा. प्रदीप शर्मा, विषयवाद विशेषज्ञ उद्यान करसोग के अनुसार बागवान जो हाल ही में निम्न ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सेब के बागीचे लगा रहे हैं, क्लोनल रूट स्टाक एम-7, एम-9, एम-11, एम-793, एमएम-106 लगा कर उन पर माईकल, मोलस डैलिसियस, अन्ना, डोरसैंट गोल्डन की कलम लगा कर 3 सालों में फसल प्राप्त कर सकतें है।
चमेली देवी नेगी, उद्यान विकास अधिकारी करसोग के अनुसार 5-6 पौधों के अन्तराल में डोरसैंट गोल्डन, रैड गोल्डन, ग्रीनी स्मिथ की गेलगाला पौधे (निचले क्षेत्रों के लिए) में अवश्य लगाएं। यह पौधे नर जाति के पौधे कहलाए जाते हैं तथा परागण के समय बहुत सहायक सिद्ध होते हैं तथा सेब की फसल की पैदावार भी अधिक होती है।
बागवानी विभाग को उनके बागीचों में जाकर बागवानों को सेब में फूल आने से पहले सुप्ता अवस्था, चांदी नुमाकली, हरी कली, आधा ईचं कली तथा फूल आने के बाद टाईट कलस्टर पंखुड़ीपात तथा फल बनने की अवस्था तक कीड़े मकौड़ों व अन्य बीमारियों की रोकथाम के लिए डॉ यशबन्त सिंह परमार औद्योगिकी एवं वानकी विश्वविद्यालय नौणी द्वारा प्रकाशित छिड़काव सारणी से जानकारी प्रदान करने के लिए बागवानों को समय-समय पर प्रशिक्षण शिविर लगा कर प्रशिक्षित करते रहते हैं।
करसोग घाटी में वितीय वर्ष 2015-2016 में हिमाचल प्रदेश सरकार ने बागवानों को सिंचाई के लिए रबड़ पाईप, पौधों की कटिंग के लिए फेल्को-7 कैचिंयां, पावर टिलर, सेब की फसल को ओलों से बचाने के लिए एन्टी हेल नेट, वर्मी कम्पोस्ट इकाईयां, पौध संरक्षण के लिए कीड़ों व मकोड़ों की रोकथाम के लिए दवाईयां वितरित करना तथा पुराने पौधों उखाड़ने के बाद नयें पौधे लगाने (सेब जीर्णोद्धार, बागवानी का क्षेत्र विस्तार, पावर स्प्रे, फसलोपरान्त समेकित प्रबन्धन के लिए भण्डार घर, ग्रडिंग हाउस, कोल्ड स्टोरिज आदि के लिए जहां 40 लाख रूपयों की अनुदान राशि दी गई हैं।
इस वित्तीय वर्ष में अनुदान के रूप में 50 लाख रूपये विभिन्न योजनाओं पर बागवानों को दिए जा रहे हैं।