नेरचौक (कपिल सेन ): भंगरोटू ऐतिहासिक नलवाड मेला में दूसरे रोज भी व्यापारियों के स्टॉल खाली रह गए। जिसके चलते भंगरोटू मेला फ्लॉप शो साबित हो गया है। मेले के सफल आयोजन को लेकर मेला आयोजन समिति के प्रयास विफल हो गए हैं, हालांकि ऐतिहासिक नलवाड मेले के वजूद को बनाए रखने के लिए प्रदेश सरकार ने इसे जिला स्तर का दर्जा प्रदान किया । लेकिन प्रशासन की लापरवाही ने मेले के पारंपरिक वजूद को ही खत्म कर दिया है। बताया जाता है कि मेला आयोजन समिति पर कुछ चुनिंदा लोगों की मनमर्जी भारी पड़ी है, जिस के चलते मेले में लोगों से भेदभाव के कारण अधिकतर लोग रुष्ट हैं।
मेले में जो स्टॉल लगाए गए हैं वह खाली पड़े हैं। व्यापारी तक मेले में नहीं पहुंचे हैं। यही नहीं आयोजन समिति ने 10 देवताओं को निमंत्रण दिया था, जहां मेले में सिर्फ आधे देवता व कारदार शरीक हुए हैं।
सूत्रों से भी ज्ञात हुआ है कि देवता कमेटी में शामिल कुछ एक कारिंदों ने अधिकतर देवताओं को निमंत्रण ही नहीं दिया है। कुछ एक स्थानीय देवताओं के कारदारों का तो यह तक कहना है कि वे मेले में देवता को शामिल कर मेले की शोभा बढ़ाना चाहते थे। लेकिन उनके आवेदन देने के बावजूद भी अनदेखी की गई है।
मेला कमेटी ने मेले के सफल आयोजन के लिए जिन समितियों का गठन किया गया था, उनमें शामिल सदस्यों को अंतिम रूप देने से पहले राय तक लेना उचित नहीं समझा गया। अर्थात मेले के आयोजन समिति में कुछ चुनिंदा लोगों ने दखल अंदाजी करते हुए अपनी मनमर्जी से ही निर्णय लिए जिस कारण मेले का सफल आयोजन नहीं हो पाया है।
बता दें कि ऐतिहासिक नलवाड मेला रियासतकाल के समय से मनाया जाता आ रहा है। जहां से कि जिला मंडी सहित ऊपरी हिमाचल के किसान अच्छी किसम के बैलों की खरीद-फरोख्त किया करते थे। जहां मेले में खासी भीड़ भी रहती थी, यही नहीं मेले में सायरी देव सत श्री बाला कामेश्वर की हार के लोग देवता का पूजन भी करते थे और दूरदराज के भगत भी मेले में पूजन व आशीर्वाद लेने हेतु आया करते थे। लेकिन आधुनिक समय ने मेले को वजूद को ही खत्म कर दिया है । लेकिन पिछले कुछ गत वर्षो से कुछ सामाजिक संगठनों के प्रयासों से मेले को नलवार सहित देवी देवताओं को भी शामिल करने का निर्णय लिया गया था। वहीं मेले को अच्छी तरह से मनाया जा रहा था, हालांकि मेले को जैसे ही सरकार द्वारा जिला स्तरीय दर्जा मिला। किंतु इस मर्तबा मेले की रौनक पूरी तरह से गायब नजर आ रही है, मेले में ना तो व्यापारी वर्ग ही पहुंचा है और ना ही देवता।