-कुल्लू-सिरमौर में प्राचीन मंदिर चढ़ रहे अग्नि की भेंट
शैलेंद्र कालरा । नाहन
इसमें कोई दो राय नहीं है कि हिमाचल के प्राचीन मंदिर चोरी की वारदातों को लेकर संवेदनशील हैं। लेकिन अब देवभूमि के मंदिर आगजनी की घटनाओं को लेकर भी श्रद्धालुओं को मायूस कर रहे हैं क्योंकि मंदिरों को आग से बचाने के उपाए करने की कोशिश नहीं हो रही है। सिरमौर-कुल्लू में दो प्राचीन मंदिरों की बात करें तो आगजनी की घटना ने प्राचीन इतिहास को राख में तबदील कर दिया है।
बीती रात कुल्लू की सैंज घाटी के शांघड गांव में पांडवों के द्वारा बनाए गए शंगचुल महादेव का प्राचीन मंदिर जलकर राख हो गया। मंदिरों की सुरक्षा को लेकर कई कदम उठाने का दावा किया जा रहा है, लेकिन अब चिंता की बात यह है कि मंदिरों को आगजनी की घटनाओं से भी बचाने की आवश्यकता है। शांघड गांव के अग्निकांड में शंगचुल महादेव के रथ के अलावा केवल तीन मकान ही बच पाए हैं। मंदिर में मोहरों सहित अष्टधातु की 20 पौराणिक मूर्तियां भी जलकर राख होने का समाचार है। अग्निकांड इतना भीषण था कि गांव के 13 घर भी इसकी भेंट चढ़ गए।
घास के मैदान में प्राचीन मंदिर के स्वाह हो जाने से लाखों श्रद्धालुओं की भावनाओं को ठेस पहुंची है। सवाल इस बात पर भी उठाया जा रहा है कि कहीं जानबूझ कर मंदिरों को आग की भेंट चढ़ाने की साजिशे तो नहीं की जा रही, ताकि बहुमूल्य मूर्तियों को चुराया जा सके। नवंबर 2013 में सिरमौर के राजगढ़ उपमंडल में शाया स्थित शिरगुल देवता का प्राचीन मंदिर भी स्वाह हो गया था।
800 साल पुराने इस मंदिर की अहमियत इस कारण थी क्योंकि शिरगुल देवता का संबंध इसी गांव से था, जो बाद में तपस्या के लिए चूड़धार चोटी पर चले गए थे। शिरगुल देवता के प्रति शिमला व सिरमौर जिलों के लाखों श्रद्धालुओं की आस्था है। इस मंदिर में भी कई प्राचीन मूर्तियों के आग की भेंट चढ़ने की बात कही गई थी।
दावा किया गया था कि मंदिर को दोबारा पुराने स्वरूप में लाया जाएगा, लेकिन पौने दो साल बीत जाने के बाद कुछ नहीं हुआ है। इसी क्षेत्र के बुद्धिजीवी शेरजंग चौहान का कहना है कि प्राचीन मंदिरों में चोरी की घटनाओं को रोकने के लिए तो कदम उठाए जा रहे हैं, लेकिन प्राचीन मंदिरों को आग से बचाने के लिए भी ठोस रणनीति तैयार की जानी चाहिए क्योंकि देवभूमि की पहचान प्राचीन मंदिरों से ही है।