वीरभद्र सिंह के लालकोठी के अवलोकन पर उठा सवाल
नाहन: क्या 394 साल पुराने नाहन शहर के हैरीटेज भवनों को संरक्षण मिलेगा? यह सवाल आज (4 अप्रैल 2015) को ठोस तरीके से उठा है क्योंकि राज्य के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने स्थानीय कांग्रेसी नेताओं के आग्रह पर इसके प्रति दिलचस्पी दिखाई है। दरअसल आज सुबह दिल्ली रवाना होने से पहले सीएम ने शहर के एक हैरीटेज भवन ”लाल कोठी“ का अवलोकन किया। इस भवन की सही निर्माण तिथि का फिलहाल नहीं पता चल पाया है, लेकिन यह जरूर तय है कि इसका निर्माण सिरमौर रियासत के शासक राजा शमशेर प्रकाश के शासन के दौरान 1856 से 1898 के बीच हुआ।
लिहाजा यह माना जा सकता है कि इस हैरीटेज भवन का इतिहास 117 से 159 वर्ष पुराना हो सकता है। यानि इस भवन की उम्र लगभग 150 साल हो चुकी है। फिलहाल इस भवन में राजस्व विभाग के अधिकारियों का आवास बनाया गया है। बताया गया कि मुख्यमंत्री ने इस हैरीटेज भवन की महत्वता के मद्देनजर हरेक कमरे, बालकनी के अलावा स्नानघर व रसोई इत्यादि का बारीकी से अवलोकन किया। दरअसल डेढ़ दशक से नाहन शहर को हैरीटेज टाउन घोषित करने की मांग है क्योंकि इस ऐतिहासिक शहर में केवल लाल कोठी ही हैरीटेज भवन नहीं है, इसके अलावा दो दर्जन से अधिक अन्य भवन भी अपनी विरासत में हैरीटेज अहमियत को दामन में समेटे हुए हैं।
इन अधिकतर भवनों में सरकारी कार्यालय चल रहे हैं। वन अरण्यपाल व डीसी कार्यालय के अलावा नर्सिंग होस्टल की भी हैरीटेज अहमियत है। साथ-साथ विक्रम कैसल में स्थित हैरीटेज भवन को एक अरसा पहले होमगार्ड विभाग के हवाले कर दिया गया। चौगान के समीप सुरेंद्रा क्लब के भवन का उदघाटन तत्कालीन शासक सुरेंद्र प्रकाश ने 28 मई 1910 में किया था। लिहाजा इस भवन ने 2010 में सौ साल की उम्र पूरी कर ली। वहीं रानीताल गार्डन की स्थापना 1889 में हुई थी 2014 में इस गार्डन ने 125 साल का इतिहास बना लिया, लेकिन नगर परिषद इस अवसर पर कोई कार्यक्रम आयोजित नहीं कर सकी।
शमशेर वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला के भवन का इतिहास भी लगभग 250 साल पुराना हो चुका है। हैरीटेज अहमियत के अमर बोर्डिंग भवन में पीजी कॉलेज का कन्या छात्रावास चल रहा है। गौरतलब है कि डीसी कार्यालय को रियासतकाल में स्टोन हेंज के नाम से जाना जाता था। करीब सात साल पहले टाउन एंड कंट्री प्लानिंग को शहर के हैरीटेज भवनों की डॉक्यूमेंटेशन करने की जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन बाद में यह योजना अधर में ही लटक गई।
पूर्व विधाायक कंवर अजय बहादुर सिंह का कहना है कि शहर में अधिकतर हैरीटेज भवनों का निर्माण रियासत के शासक शमशेर प्रकाश के वक्त हुआ था। उन्होंने बताया कि आज जब लालकोठी का अवलोकन किया गया तो उस दौरान भवन में एंटीक फर्नीचर उपलब्ध था, लेकिन काफी सामान मौजूद नहीं था। लिहाजा प्रशासन को अब मौजूद एंटीक्स की डॉक्यूमेंटेशन कर लेनी चाहिए। सरकारी हैरीटेज भवनों के अलावा शहर में निजी क्षेत्र में भी इस तरह के भवनों की एक लंबी फेहरिस्त है। इसमें शाही महल के अलावा रणजोर पैलेस, सूरत पैलेस, रणविजय भवन, प्रताप भवन व शमशेर विला इत्यादि प्रमुख हैं।
क्यों है लालकोठी की अहमियत?
आज सुबह जब मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह इस हैरीटेज भवन का अवलोकन करने पहुंचे तो स्वाभाविक सी बात थी कि इसका इतिहास भी सामने आना था। यह भवन किसके लिए बनाया गया था, इसका जवाब भी सामने आया। नाहन की ग्रेविटी पेयजल योजना के सूत्रधार डॉ. पर्सियल जो नाहन फाउंड्री के इंजीनियर का जिम्मा भी संभालते थे, का आवास था। इसी शख्स ने नाहन में इटालियन आर्किटेक्चर को परिचित करवाया था। डॉ. पर्सियल की पत्नी को शहर में बूढ़ी मेमसाब के नाम से जाना जाता था, जिन्होंने अपने पति की मौत के बाद 26 साल तक नाहन में रही। ताकि विला राउंड में स्थित कब्रिस्तान में ही उन्हें अपने पति के साथ दफनाया जा सके। देष की आजादी के बाद कुछ समय के लिए वह इंगलैंड भी चली गई थी।
फाउंडरी को भी नहीं जा सकता भुलाया
140 साल पुराने नाहन फाउंडरी परिसर की भी अपनी हैरीटेज अहमियत है। हालांकि इस परिसर में कॉलेज निर्माण का शिलान्यास भाजपा सरकार के कार्यकाल में कर दिया गया था, लेकिन इसकी हैरीटेज अहमियत को देखते हुए अब नगर परिषद की भूमि पर कॉलेज भवन के निर्माण की योजना है। इस फाउंडरी को 1875 में बनाया गया था। 27 हजार यार्ड में फैले इस परिसर की आज भी कीमत अरबों में हो सकती है। गौरतलब है कि फाउंडरी में बंद पड़ी मशीनों की भी एंटीक वैल्यू है। इसको लेकर कुछ माह पहले वीडियोग्राफी भी करवाई गई थी।
क्यों न हो नाहन, हैरीटेज टाउन?
शहर में हैरीटेज भवनों के अलावा गलियां, तालाब, सैरगाहें व मैदान भी अपने में इतिहास को समेटे हैं। शहर की खासियत है कि एक छोर से चलना शुरू कीजिए तो उसी छोर पर चक्कर लगा कर पहुंचा जा सकता है। इसके अलावा पक्का तालाब व फाउंडरी तालाब भी ऐतिहासिक हैं।