शिमला (एमबीएम न्यूज) : हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. ए.डी.एन.वाजपेयी ने कहा है कि नोटबंदी के कारण देश का आर्थिकी और सामाजिक विकास प्रभावित हुआ है। एक हज़ार और पांच सौ रूपये के पुराने नोटों को बंद करने से सबसे अधिक ग्रामीण क्षेत्रों के किसान, बागवान एवं उत्पादक प्रभावित हुए हैं। इन्हें न तो समय पर तैयार फसल को बेचने के लिए पैसों की कमी से सुविधाएं मिल पाई और न ही भविष्य के लिए फसलों की बिजाई हेतु बीज, दवाऐं और खादें उपलब्ध हो पाई। थोड़े समय के लिए भले ही यह निर्णय प्रभावशाली है लेकिन भविष्य के लिए इस निर्णय को कड़े इम्तिहान और चुनौतियों से गुज़रना होगा।
कुलपति वाजपेयी आज अर्थशास्त्र विभाग एवं राष्ट्रीय समाज विज्ञान परिषद् द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित ‘‘नोटबंदी के सामाजिक और आर्थिक प्रभाव’’ विषय पर एक दिवसीय परिसंवाद के उदघाटन अवसर पर बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि नोटबंदी के कारण जहां एक ओर बेरोज़गारी बढ़ी वहीं दूसरी ओर इससे युवा वर्ग एवं बुजुर्ग लोगों की परेशानी भी बढ़ी है। उन्होंने कहा कि गांधी नीति के अनुसार जब हम सभी के कल्याण की कल्पना करने के लिए कोई निर्णय लेते हैं तो उस समय उससे प्रभावित होने वाले सभी वर्गों की कठिनाईयों को बारीकी से देखा जाना चाहिए तथा विमुद्रीकरण जैसे आर्थिक निर्णय लेने से पूर्व इस प्रकार की व्यवस्था बनाई जानी चाहिए थी जिससे न तो एटीएम खाली मिलते और न ही लोगों को लाईनों में लगना पड़ता।
वाजपेयी ने कहा कि विमुद्रीकरण के निर्णय से जहां हमें केवल ज़रूरत के अनुसार पैसा खर्च करने की सीख मिली वहीं दूसरी ओर विमुद्रीकरण से उन तत्वों का भी भण्डाफोड़ हुआ जिन्होंने लाखों रूपयों के हस्तान्त्रण को एकाएक सम्भव बनाया। उन्होंने कहा कि विमुद्रीकरण के निर्णय को जिस प्रकार कार्यान्वित करने वाली एजैंसियों ने आगे बढ़ाया वह काबिले तारीफ है लेकिन भविष्य के लिए इस प्रकार के चुनौतिपूर्ण निर्णय लेने से पहले आर्थिकी और सामाजिक विकास पर पड़ने वाले प्रभाव से पहले विस्तृत विचार-विमर्ष एवं मंथन किया जाना चाहिए।