शिमला (एमबीएम न्यूज) : हैरान कर देने वाली बात है, सरकार दिव्यांगों के उत्थान की बड़ी-बड़ी बातें करती है। रामपुर के ननखड़ी के नजदीक बाल्टी गांव में 25 साल की अनीतू एक ऐसा जीवन यापन कर रही थी, जिसे अगर आप उसके घर पहुंच कर देखते तो शायद आंखें तक नम हो जाती। कहते हैं, जिसका कोई नहीं उसका तो खुदा होता है। शायद यह पंक्तियां अनीतू पर तब खरी उतरी जब वह 25 साल की हुई।
उमंग फाउंडेशन अनीतू के लिए एक फरिश्ते से कम नहीं बनी। यकीन मानिए, पहली बार अनीतू को डॉक्टरी सेवाएं मिली। मंगलवार को नरकीय जीवन से निकाल कर अनीतू को राजधानी पहुंचाया गया। दीगर है कि पिछले कुछ दिनों से अनीतू की दास्तां मीडिया की सुर्खियां बनी हुई है। अनीतू को ढारे में जीवन अब नहीं बिताना पड़ेगा, क्योंकि उमंग फाउंडेशन की कोशिशें रंग लाने लगी हैं।
मंगलवार को अनीतू की दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल में डॉक्टरों ने जांच की। इसके बाद उसे मशोबरा स्थित नारी सेवा सदन भेजा गया है। हालांकि डॉक्टरों ने पड़ताल के बाद कहा कि फौरी तौर पर अनीतू को इलाज की आवश्यकता नहीं है। लेकिन इतना तय है कि उमंग फाउंडेशन के प्रयास से अनीतू को नया जीवन नसीब हो गया है।
मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक अनीतू के साथ उसकी दो मौसियां भी यहां पहुंची। कार्टरोड से मौसियों को अनीतू को कंधों पर उठाकर लाना था, लिहाजा दम फूल गया। एमबीएम न्यूज नेटवर्क, उमंग फाउंडेशन के इस प्रयास की तह दिल से प्रशंसा करता है। उम्मीद करते हैं कि यह संस्था भविष्य में भी ऐसी कई अनीतू ढूंढ निकालेंगी, जो सरकारी तंत्र की नालायकी की वजह से सामने नहीं आ सकती हैं।
यह है सवाल…
हाल ही में मुख्यमंत्री ने दिव्यांगों को विशेष आरक्षण देने पर विचार की बात कही थी। साथ ही दिव्यांगों के मौके पर ही प्रमाणपत्र देने की बात यदा-कदा होती रहती है। बड़ा सवाल यह है कि अनीतू के आसपास का सरकारी अमला क्या कर रहा था। क्यों अब तक अनीतू की कहानी सरकारी सिस्टम के जरिए सामने नहीं आ पाई। प्रश्न यह भी है कि क्या अब उन कर्मचारियों से जवाब मांगा जाएगा, जो इस इलाके में तैनात हैं।